“चलो करें हम तीर्थ वन्दना, अवसर बड़ा महान है जहाँ जीव को मिले शान्ति, वही तीर्थ स्थान है” प्रिय भक्तजनों, प्रेम और सौहार्द्र का प्रतीक होली के सतरंगी महापर्व में अगर अपने इष्ट की भक्ति का पावन रंग का अमृत तुल्य मिश्रण हो जाये और उस अमृत तुल्य मिश्रण की फुहार हम पर
बिघ्नो का नाश होता है महावीर नाम से निर्भय बनो और जय कहो श्री वीर प्रभु की सब मिल के आज जय कहो श्री वीर प्रभु की मस्तक झुका के जय कहो श्री वीर प्रभु की स्नेहीजनों, जैसा कि आप सबको विदित है कि प्रतिबर्षानुसार इस वर्ष भी युग नायक, देवों के
हमारे संचालक द्वय………………….जी और……………………जी को बहुत बहुत धन्यवाद। मंचासीन गण मान्य विभूतियों को समर्पित इन चार पंक्तियों के साथ मै अपनी बात शुरु करना चाहूंगा कि. . ‘कहाँ हैं ऐसे लोग जो निस्पृह रण में जूझने जाते हैं परहित में निजहेतु त्यागकर प्यार बाँटते जाते हैं आशाओं के पुष्प पल्लवित होते इन्हीं मालियों
‘ श्याम सलोने राधा गोरी बरसाने का हुल्लड़ था रंग रंगीले फगुआ होली शहरों वाला अल्हड़ था जब रंग बरसा झूम गये सब धूम मची थी नगरी में भक्त मगन थे पी के नाचे अमृत वाला कुल्हड़ था अभी तक एक स्वप्न सा प्रतीत होता है कि होली मिलन का कार्यक्रम इतना अभिनव एवम
‘श्री शांतिनाथ भगवान का मस्तकाभिषेक धन्य धन्य वो लोग जो आकर माथा रहे हैं टेक’ भेड़ाघाट में परम पवित्र सरयू नर्मदा की शीतल लहरों का अविरल प्रवाह जब अपने सम्पूर्ण वेग से धुंवाधार प्रपात से धरती तल पर गिर कर सहज हो जाता है तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे नर्मदा नदी उमंग में बहती
रंगो को थिरकते हुये सपनों को महकते हुए पियूष छलकते हुये सौगातें दमकते हुए अपनों को चहकते हुए आनंद बरसते हुए सब देखेंगे सभी चलेंगे सभी चलेंगे सब देखेंगे ख़ुश्बूओ की लड़ाई होगी मनुहारो की बौछार होगी व्यंजनों की लड़ाई होगी चटओरी मैया की जयकार होगी गटपट का उद्धार करेंगे सब देखेंगे सभी चलेंगे सभी
हुनर वाह दोस्त तेरे हुनर के क्या कहने जब चाहो जिसकी चाहो जितनी चाहो उतनी पतंग उड़ाओ ये लाओ वो लाओ ये गाओ वो सुनाओ हवा चलाओ आस्मां बनाओ और मन भाये तो ठीक मन चाहे तो हाथ छोड़ दो डोर तोड़ दो पँतग मरोड़ दो.. ये भी पढ़ें: मुहब्बत का गीत।
कभी कभी चिंतायें कैकटस हो जाती है नुकीली चुभतीं सी कष्टप्रद पीड़ादायक संताप के रंग में रंगी हुईं स्वतः ही पल्लवित होतीं जाती हैं प्रथम दृष्ट्या ऐसा प्रतीत होता है जैसे, इनका जन्म अकारण ही होता है ये बिन बताये ही आती हैं कदाचित, दृष्टि परिपूर्ण नहीँ है किंचित रुप से, परिस्थितियाँ वैयक्तिक हो सकती
बूढ़ा पेड़ कनेर का, पनघट के था पास रोज़ सबेरे मिलन की, करते थे हम आस मुट्ठी भर के दूब ली, फूल चमेली तीन भेंट में दे के हो गये, बातों में तल्लीन लोहडी का मेला गये, मंगल का बाजार काका जी की गोलियाँ, भूल गये हो यार इमली पत्थर पीस के, चटखारे छै सात
बातो-बातों में मुँह मोड़ना आ गया हाथ मझधार में छोड़ना आ गया इससे ज्यादा मुझे और क्या सीखना प्यार में आज दिल तोड़ना आ गया इस शहर में नहीँ गाँव में ले चलो पंख ना खोलना पाँव में ले चलो तुम मेरी आँख में डूब जाना वहीँ आम के पेड़ की छाँव में ले चलो वक़्त