रोमांटिक कविता – हुनर/ Romantic poem-hunar

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      हुनर       

वाह दोस्त 
तेरे हुनर के
क्या कहने 
जब चाहो 
जिसकी चाहो 
जितनी चाहो 
उतनी 
पतंग उड़ाओ 
ये लाओ 
वो लाओ 
ये गाओ 
वो सुनाओ 
हवा चलाओ 
आस्मां बनाओ 
और 
मन भाये तो 
ठीक 
मन चाहे तो 
हाथ छोड़ दो 
डोर तोड़ दो 
पँतग मरोड़ दो.. 
 
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‘धुंध’

 किसको दूँ सदा 
किसका आसरा 
ना जमी रही 
ना ही आस्मां 
सब तो थे मेरे  
सब थी नेमतें 
अब किसे कहूँ  
कौन है मेरा 
सुर्ख धुंध है  
स्वांस मंद है 
जिंदगी तेरा 
क्या करेंगे हम 
वक़्त ने किया 
क्या हंसी सितम 
हम रहे ना हम 
हम रहे ना हम   
              
 

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