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अतिथि स्वागत शायरी

फूल दरख्तों पर खिले हुये, कम ही देखे हैं
हमने तो नज़र नज़र केवल, गम ही देखे हैं
आप ऐसी तासीर, कहाँ से पाये हैं ज़नाब
हमने हमेशा मुस्कराने वाले, कम ही देखे हैं।

जगमोहन सी बातें करके, लूट लूट ले जाते हैं
सौगातों की झोली भर कर, प्यार बांटते जाते हैं
इस सोहबत को कौन ना तरसे, हम तो किस्मत वाले हैं
जब जब हमने किया निवेदन, आप सहज आ जाते हैं।

मकरंद सी तासीर, गुलकंद सी शख्सियत है इनकी
कुदरत की रहमतें हैं ये, किसी-किसी पर ही बरसती हैं।

मुझे जानना समझना, बिलकुल आसान है दोस्तो
मैं रो पड़ता हूँ अपने लोगों को, रोता हुआ देखकर।

कोई एक दो नहीं, पूरी गुलालों की बस्ती हैं
आप मुहब्बतों के इंद्रधनुष हैं, आप खुशनुमा हस्ती हैं।

ख़ुदा ने खिलखिलाते रंग, निहायत ही चंद बनाये हैं
उनमें से सबसे मोहक, आज हमारी महफ़िल में आये हैं

अवसाद निराशा रंजोगम, अहम का रूप लिए फिरता
अपने सर पर सारे जग का, दुःख संताप लिये फिरता
अपनी अपनी दुनिया का, होकर रह जाना आसां है
जग की खातिर जग के संग संग, चलने वाला कम मिलता।

मुहब्बतों के दिलदारी के ढेरों, महताब आप में पलते हैं
सौगातों के झुण्ड के झुण्ड, आपसे मिलने को मचलते हैं
हम लोग वो अबीर कहाँ से लायें, जो आप पर खिल जाये
आप तो अपनी हथेलियों में, गुलालों के बादल लिये चलते है।

 

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   मंच संचालन शायरी

जब वक्त चल रहा है, रफ़्तार में बदल के
अरमान हुये पानी, सब बर्फ से पिघल के
जब लोग मतलबी हैं, रिश्ते हैं तमाशाई
तो क्यों न चलें चालें, हम भी बदल-बदल के।

कुछ बात नहीं थी जब तक, बात नहीं की
जो बात हुई है, तो मुलाकात में मुश्किल
होती नहीं जो बात तो, हर बात थी आसां
होती है अब कोई बात तो, हर बात में मुश्किल।

अभी सूरज, रूहानी दरख्तों में अटका है
ख़्वाहिशों के लम्हे, पत्तियों से फिसलने तो दो
सितारों का मेला भी सजेगा, चाँद भी निकलेगा
खुशनुमा शाम को, मतवाली रात में बदलने दो।

थोड़े ज़िद्दी थोड़े पागल, होकर सीमायें तोड़ो
सोईं सभी तमन्ना छेड़ो, बिखरे ख्वाबों को जोड़ो
चाँद सितारे छूने निकलो, मन में ना संशय पालो
जीत आपकी निश्चय होगी, चिंता करना तो छोड़ो।

हिन्द इंडिया कह लो यारो, चाहे भारत कह लो तुम
दिल में अपने वतन बसा लो, वतन के दिल में रह लो तुम
हाथ बढ़ाओ साथ में आओ, रँज़ ख़ुशी मिलकर बाटें
इक दूजे को गले लगायें, मिलकर नभ को छू लें हम।

सितारों को मुट्ठी में दबाकर, हम चाँद से बात कर लेंगे
सूरज से तेवर छीन लेंगें, दहकते दिन को रात कर देंगे
आप का साथ और गुरुओं का सर पर हाथ रहेगा तो
चाहे गौरी आये या गोरे आयें, सबसे दो दो हाथ कर लेंगे।

   दीप प्रज्ज्वलन शायरी 

दिन डूबता है डूबने दो, आप शाम से ढलते रहिये
सुबह सूरज हथेलियों में होगा, चिरागों से जलते रहिये।

हम तो खुद दीप बने झिलमिल, तेरे चरणों में जलते हैं
तेरी रहमत के ध्रुव तारे, बन पुष्प हृदय में खिलते हैं
सुख की खुश्बू सृष्टि में है, क्या अन्धकार हम भूल गए
यह दिव्य ओज यह दिव्य दिवा, सब तेरी कृया से पलते हैं।

सुख के-दुःख के सब रंग तेरे, हम क्या समझें हम क्या जाने
जब डोर तुम्हारे हाथ में है, फिर क्या संशय क्यों घबड़ायें
इक ज्योति जले जलती ही रहे, नस नस में तेरी कृपा बहे
जिस रंग में रंगना हो रंग दो, किस रंग हो तुम हम क्या जानें।

क्या अंधकार से डरना अब, आओ सूरज बन जाते हैं
धरती अम्बर के तम सारे, जिससे डर कर छट जाते हैं
इक नूर बहे रूहानी सा, रौशन यह आलम हो जाये
आओ मित्रो हम मिल करके , इक झिलमिल दीप जलाते हैं।

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