कहानी लॉक डाउन – लॉक डाउन में एक घर की कहानी ऐसी भी

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कहानी लॉक डाउन

कहानी लॉक डाउन – लॉक डाउन में एक घर की कहानी ऐसी भी। कोरोना के कारण हुये लॉक डाउन में हम सबको तकलीफ़ तो हुई लेकिन इसके अनुभव हर किसी के कुछ अलग ही रहे। आइये पढ़ते हैं एक कहानी ऐसे ही एक अनुभव की.. 

कहानी लॉक डाउन

नीरज अपने वॉट्सऐप पर कोरोना वायरस से रिलेटिड कभी फनी तो कभी सच्चे-झूठे वीडियो देखने में तल्लीन था लेकिन बार बार तान्या के मोबाईल की रिंगटोन बजने के कारण झल्ला कर कहता है ‘तान्या, यार तुम्हारा यह मोबाइल कब से मुझे बार-बार परेशान कर रहा है। आधा घंटे में यह पांचवी दफा बज रहा है। तुम अपना मोबाइल, अपने साथ क्यों नहीं रखती हो’ ….

तान्या इरिटेट हो कर अपना मोबाइल ले कर, छत पर जाकर सूखे कपड़े उठा कर क्लोथ बास्केट में इकट्ठा करने लगती है।

‘हाय तान्या।’ अचानक पीछे से राधिका की आवाज़ आती है तो तान्या फ़ीकी मुस्कान से उसे देख हाथ हिला कर उसे हाय करती है।

राधिका सोशल डिस्टेनसिंग के अनुसार उचित दूरी पर आकर उसे ध्यान से देखती है और कहती है ‘तान्या तू इतना थकी और टेंशन में क्यों दिख रही हो? सब ठीक है ना घर पर?’ पड़ोसी के साथ साथ अच्छी दोस्त भी थीं तान्या और राधिका। राधिका भी अपनी छत से कपड़े लेने आयी थी।

‘यार राधिका क्या बताऊं तुझे?, देश लॉकडाउन क्या हुआ मुझे तो घर में सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिल रही है।’

‘मैं समझ गयी तेरी परेशानी, तान्या तू अपने पति और बच्चों से मदद क्यों नहीं ले रही।’

‘तुझे तो पता ही है राधिका कि नीरज को हर चीज हाथों पर चाहिए होती चाहे एक गिलास पानी ही क्यों न हो, वह घर के कामों में हाथ बटाना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं, वही आदत मेरे दोनों बेटों में भी आ गई है।’

‘लॉकडाउन के वजह से हमारी मेड भी नहीं आ रही है, तो तुझे नीरज जी और बच्चो से अपनी मदद के लिए कहना चाहिए।’ राधिका ने उसे समझाते हुये कहा।

‘अच्छा छोड़, क्या हुआ तेरे पति घर के काम में कॉपरेट नहीं कर रहे लेकिन जो वो कर रहे वो और भी शानदार है।’ राधिका प्रशंसा भरे स्वर में बोली।

तान्या थोड़ा चिढ़ते हुये बोली “अब घर पर बैठे बैठे क्या ऐसा कमाल कर रहे साहब।’

लगता है तूने दो – तीन दिनों से अपना सोशल ग्रुप चेक नहीं किया।’ राधिका उसकी चिड़चिड़ाहट का मज़ा लेने लगी थी।

‘यार मैं इतना थक जाती हूँ कि बेड पर जाते से ही, सो जाती हूँ।’

राधिका ने तान्या को बताया कि नीरज सिटी क्लब के ग्रुप पर अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभा रहे हैं और लोंगो को जागरूक करने वाले वीडियो और पोस्ट डाल रहे हैं जो लोगों को पसंद भी आ रहे है

और इतना ही नहीं, नीरज की पहल से ग्रुप में पाँच लाख रुपये एकत्रित हुए हैं उसमें से एक लाख रुपये से अशक्त और निसहाय लोगों की भोजन व्यवस्था की गई है, और बाकी धनराशि मुख्यमंत्री कोष में जमा की जायेगी।

और साथ ही कुछ और धनराशि इकट्ठा करके हमारे जो सहधर्मी बंधु आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उनकी भी मदद करने का भी निर्णय लिया गया है ताकि दिया तले अंधेरा ना रहे। इसका श्रेय भी नीरज जी को ही जाता है।

वैसे देखा जाए, यदि सभी लोग अपनी अपनी जिम्मेदारियां ठीक से समझे तो इन इक्कीस दिनों में ही कोरोना वायरस पर काबू पा लिया जाएगा परंतु कुछ ख़ास वर्ग के अंधविश्वासी धर्मगुरुओं को कौन समझाये कि खुद भी मरेंगे साथ में लाखों को भी लेकर जाएंगे। मूर्खता की भी हद है यार।

नीरज की तारीफ़ सुनकर तान्या का उदास चेहरा गुलाब की तरह खिल जाता है, और कुछ क्षण के लिए तान्या आश्चर्य में भी पड़ जाती है! उसे नहीं पता था कि नीरज सामाजिक जिम्मेदारियों को लेकर इतना जागरूक है। ‘राधिका तूने सही कहा, यार मेरा पति हीरो की भूमिका में है और मुझे पता ही नहीं, यदि सभी घर के कामों में लग जायेंगे तो कोरोना फाइटर कहाँ से आयेंगे। मुझे गर्व है नीरज पर।’

राधिका ने कहा ‘हाँ, और साथ ही हम महिलाओं का भी कुछ कर्तव्य बनता है। मैंने सुना है कि दवा के साथ दुआ भी जरूरी होती है क्यों ना हम अपने ग्रुप में एक निश्चित टाइम पर अपने-अपने घर पर बैठकर भगवान से प्रार्थना करें कि देश इस ‘कोरोना आपदा’ से जल्दी से जल्दी बाहर आ आए। और मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी प्रार्थनाएँ, सकारात्मक सोच, और सोशल डिस्टेनसिंग का पालन कोरोना जैसी छुआछूत की बीमारी से हम सब को बचा सकती है। प्रभु सब ठीक करें।

कहानी लॉक डाउन आपको कैसी लगी। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। धन्यवाद

– लेखिका रिंकी जैन

 

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