Kahani Bhram – कहानी भ्रम, एक ऐसी कहानी जो सोचने पर मज़बूर कर देगी

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Kahani bhram, rinki jain ki kahaniyan

Kahani Bhramकहानी भ्रम, एक ऐसी कहानी जो सोचने पर मज़बूर कर देगी। नमस्कार पाठको। आपके समक्ष पुनः एक कहानी लेकर उपस्थित हूँ। यह कहानी संस्कारों और मानवीय संवेदना के झंझावातों की एक ऐसी तस्वीर आपके सामने प्रस्तुत करेगी कि ना चाहते हुये भी आप मेरे विचारों से सहमत होने को विवश हो जायेंगे। आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। 

Kahani Bhram

सिया बच्चों और पति को स्कूल और ऑफिस भेजने के बाद टेबल से चाय और नाश्ते की कप-प्लेट उठा कर किचन में जा ही रही थी कि, अचानक से उसकी नज़र न्यूज़ पेपर की फ्रंट लाइन पर पड़ी। सिया ने टेबल पर ही कप-प्लेट रखकर न्यूज़ पेपर को हाथों में ले लिया और धीमें-धीमें, एक हाथ में न्यूज़पेपर लेकर तथा दूसरे हाथ से चेयर खिसका कर बैठ गई ।

“एक माँ अपने तीन मासूम बच्चों को छोड़ कर अपने पूर्व प्रेमी के साथ भाग गई।’

‘धिक्कार है!!’

ये जरूर कोई घर में काम करने वाली या मजदूरी करने वाली कोई छोटी जात की स्त्री होगी, वही ऐसा काम कर सकती है, जिसे अपनी मान मर्यादा का ख्याल नहीं हो। और अपने घर परिवार को तो छोड़ो, उसे अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों का ज़रा भी ख्याल नहीं आया। ऐसी औरत से क्या समाज और नाते रिश्तेदारों के लिए ज़रा भी लज्जा और मर्यादा की उम्मीद कर सकते हैं? वो हर रिश्ते के नाम पर सिर्फ और सिर्फ एक काला धब्बा है’ धब्बा। सिया सोचते सोचते थोड़ी चिड़चिड़ा सी गई।

****

कॉल वेल की आवाज़ सुन कर सिया एकदम से चौंक गई ‘अरे मैं भी न, कहाँ खो गई थी ऐसा तो कुछ न कुछ सुनने को मिलता ही रहता है, इतनी बड़ी दूनिया है।’

दरवाज़ा खोला तो अपनी पड़ोसन को बेवक्त आता देख कर सिया बोली ‘अरे नीलू तू इतने सुबह-सुबह कैसे, और इतनी अस्त व्यस्त क्यों दिख रही है? सब ठीक तो है?’

‘अरे सिया भाभी बात ही कुछ ऐसे है कि तुम सुनोगी तो तुम भी भौचक्की रह जाओगी।’ नीलू जैसे बम फोड़ने को आमादा थी।

‘अरे पहले अंदर तो आओ फिर एक मोर्निंग टी के साथ बैठ कर तसल्ली से तेरी बात सुनती हूँ।’

‘अरे भाभी ये चाय-वाय छोड़ो आप अगर खबर सुनोगी न तो ऐसे ही बिना चाय के ही गर्म हो जाओगी।’ नीलू उतावली होकर बोली।

‘अरे ऐसा कौन से पहाड़ टूट पड़ा सुबह-सुबह।’ सिया हैरत भरे स्वर में बोली।

नीलू अतिउत्सुकता में सिया का हाथ पकड़ कर, जहाँ अभी भी खुले न्यूज़ पेपर के साथ कप प्लेट पड़े थे, वहाँ बैठ जाती है और कहती है कि ‘भाभी तुम्हें पता है अपनी कॉलोनी के जज, ‘शीर्ष साहब ,की पत्नी अपने एक वर्ष के बेटे को छोड़ कर अपने पूर्व प्रेमी वकील के साथ भाग गई है। निर्मोही,कलमुँही को जरा भी लाज शर्म न आयी कि बिचारे जज साहब का ओहदा मिट्टी में मिल जाएगा।’ नीलू दादी अम्मा की तरह दुनियादारी को लानत भेजते हुये बोली।

सिया एकदम झटके से चेयर से खड़ी हो कर स्तब्ध रह जाती है और अपने दोनों हाथों को अपने गालों पर चिपका कर कहती है ‘यह क्या कह रही है नीलू तू!!!, कहीं मुझे मार्च के महीने में ही तो अप्रैल फूल नहीं बना रही, मुझे तो बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा है।

‘इतनी सुशील पढ़ी-लिखी ‘शौर्या, क्या ऐसा क़दम उठा सकती है ? और ‘शीर्ष, जज साहब में कमी ही क्या है ? देखने में हैंडसम हैं और समाज में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, समृध्दि, किस चीज़ की कमी है।’

‘पता नीलू, आज ऐसी ही एक ख़बर आज न्यूज़ पेपर में पढ़ने के बाद मेरे मन में बार-बार एक ही विचार आ रहा था कि यह छोटी जात के लोग जो पढ़े -लिखे नहीं हैं वो अपने घर – परिवार, समाज जैसी चीजों की चिंता भी नहीं करते। क्योंकि ऐसे लोगो के जीवन में इस प्रकार की बातें मायने नही रखती हैं।’

‘तो क्या? ‘मैं, अब तक भ्रम में जी रही थी ?’

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नीलू ने तो जैसे उसकी बात ही न सुनी हो। वह तो जाती हूँ बाद में आऊँगी कह कर यह, वह जा हो गई।

और निढ़ाल सी सिया फिर से एक गहरे चिंतन में खो जाती है।

****

कुछ दिनों बाद फिर से न्यूज पेपर में निकला “संध्या, जो औरत अपने तीन मासूम बच्चों को छोड़ कर अपने पूर्व प्रेमी के साथ भागी थी, आज वह उसी प्रेमी के चंगुल से अपनी इज्जत, आबरू खोने के बाद जैसे-तैसे अपनी जान बचा कर भाग आयी है।”

…….क्योंकि की उसका प्रेमी ही उसकी देह का सौदा करने लगा था। जब यह बात संध्या को पता चली तो उस ने इस बात का विरोध किया।

इस बात से आग-बबुला हो कर उस के प्रेमी ने पहले तो संध्या को खूब मारा-पीटा और शहर के बाहर किराए से एक घर लेकर संध्या को उसमे बन्द कर दिया और चला गया।

जब वह शाम को वापिस आया तो संध्या ने पूछा ‘तू मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहा हैं, मैंने तो तेरे प्यार के खातिर अपने बच्चों और पति को छोड़ा है, जो मुझे बेहद सम्मान देता था, मेरी इज़्ज़त आबरू का ध्यान रखता था और तू मेरी उसी आबरू का सौदा कर के पैसा कामना चाहता है?’

‘अरे रहने दे, यह सती-सावित्री वाली बातें तेरे मुंह से अच्छी नहीं लगती, प्रेमी ने चिढ़कर कहा, जब तू अपने पति और बच्चों की न हो सकी तो तू किसी और की क्या होगी ?’

‘यह तो तेरे अंदर की वासना थी जो तुझे छः,वर्षों बाद भी मेरे पास ले आयी और मैंने तो तूझ से प्यार कभी किया ही नहीं था, यह तो मेर पेशा है कि लड़कियों को अपने झूठे प्रेम जाल में फ़साओं फिर जी भर कर उन से खेलों फिर उनका सौदा कर पैसे कमाओ और ऐश करो। यह मेरा असली रूप तब सामने आता जब लड़कियां, औरतें जब पूरी तरह से बर्बाद हो जाती हैं, अब समझी तू। उसका प्रेमी जिसे की राक्षस बन गया था।

‘यह बात अलग है किसी पर ज्यादा… किसी पर कम मेहनत करनी पड़ती है। समय डालो गिफ्ट लाके दो, चोरी-छिपे घुमने ले कर जाओ, पहले रुपया-पैसा खर्च करो। जब चिड़िया पूरी तरह मेरे बिछाये जाल में फंस जाती है फिर मैं सूद के साथ बसूलता हूँ।’

‘बस ये तेरी शक्ल थोड़ी बिगड़ गई है, दो दिनों में ठीक हो जायेगी। मेरी एक पार्टी से एडवान्स बुकिंग हो चुकी है, वो तेरा दीदार करने के लिए उतावला है।’ उसका प्रेमी ज़हर बुझे स्वर में बोलता गया।

***

संध्या के पति ने उसे अपने से और बच्चों से हमेशा – हमेशा के लिए दूर कर दिया कि मैं तुझ जैसी चरित्रहीन औरत के साथ एक पल नहीं रह सकता हूँ, न ही तेरी गंदी छाया अपने बच्चों पर पड़ने दूँगा ।,

‘जा किसी नदी नाले में जा कर अपनी जान दे दे।’

***

सिया कुछ जरुरी काम से मार्केट जाने के लिए पर्स और घर की चाबियां हाथ में संभालती गेट खोला तो, सामने से अपनी पड़ौसन नीलू को कॉलवेल पर हाथ रखते देखा।

‘अरे वाह भाभी यह तो अपने बिल्कुल बागवान पिक्चर के हेमामालनी की तरह स्वागत किया है। कहीं जाने की तैयारी में लग रही हो भाभी ?

‘हाँ नीलू, मार्केट से कुछ जरूरी समान लाना था सिया ने कहा।’ सिया ने उसे टालने वाले स्वर में कहा।

‘अरे भाभी एक चटपटी खबर सुनोगी ना तो सब जरूरी समान लाना भूल जाओगी।’ नीलू फिर बम फोड़ने की तैयारी में दिख रही थी।

सिया आश्चर्य से ‘क्या हुआ अब ऐसा ?’

‘अरे भाभी तुम्हें तो कुछ पता ही नहीं होता है कि हमारे आस-पास में क्या चल रहा है? नीलू उसे दुनियादारी सिखाने के स्वर में बोली।

‘शौर्या वापिस आ गई है।’ नीलू ने बम फोड़ ही दिया।

‘सिया एकदम दंग हो कर बोली ‘तो क्या शीर्ष साहब ने शौर्या को अपना लिया है।’

‘हाँ भाभी, कलावती, वही बाई जो जज साहब के घर काम करती है, मैं आप को बताना ही भूल गई, वही बाई पिछले एक महीने से मेरे घर की भी साफ़-सफाई का काम कर रही है।’

‘उसी ने तो मुझे सब कुछ बताया है, सुबह-सुबह जज साहब अपने बच्चे को सीने से लगाये उसे रोने से चुप कराने की पूरी कोशिश कर रहे थे।’

‘उस एक वर्ष के बच्चें का बिना माँ के रो-रो कर बुरा हल हो चुका था, और पत्नी के धोखे से जज साहब पूरी तरह टूट चुके थे।’

अचानक से पत्नी को वापिस आया देख कर एक क्षण के लिए तो वह दंग रह गए।

शौर्या भी डरी-सहमी सी और आंखों से गिरते मौन आँसू को लिए, शीर्ष साहब के सामने खड़ी हो गई। शीर्ष की प्रतिक्रिया जानने की प्रतिक्षा में, कुछ क्षणों के बाद शीर्ष बच्चें को अपने सीने से लगाये, वहीं सोफे से खड़े हो कर अपनी दूसरी बांह फैला देते हैं।

शौर्या भी आश्चर्यचकित हो कर फूट-फूट कर रोने लगी, और शीर्ष जज साहब के पैरों में गिरकर बोली ‘मुझे क्षमा कर दो, मेरा अपराध क्षमा योग्य तो नहीं है, आप जो चाहें सजा दें, उफ़ किये बिना मुझे हर सजा स्वीकार है।’

‘मैंने माँ और पत्नी होने का गर्व खो दिया लेकिन मैं बेटे और आप की सेवा करती करती घर के एक कोने में पड़ी रहूंगी। बिना किसी अधिकर के बस मुझे इतनी सी जगह दे दो अपने घर में।’ जज साहब से बिना नजरें मिलाये रोते रोते शौर्या ने कहा।

‘नहीं पता शौर्या मेरे प्यार, तुम्हारे सम्मान में क्या कमी रह गई थी। मैंने तो तुम्हें अपने ह्रदय की धड़कन की तरह प्यार किया है, बस वही समझ कर मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ। तुम्हारी जगह मेरे चरणों में नहीं, मेरे दिल में है। तुम्हारी अभी भी वही जगह है जो पहले थी।’ जज साहब शौर्या को अपनी ओर खींच कर अपनी बाहों में भर लेते है।

सिया चक्कर खा कर ‘तू मुझे कहीं काल्पनिक कहानी तो नहीं सुना रही है।’

नीलू ने कहा, ‘नहीं भाभी मैं भी यही सोच कर हैरान, परेशान हूँ कि जज साहब के माता-पिता ने कितने अच्छे संस्कार दिये होगें, कितना स्त्री के लिए सम्मान देना सिखाया होगा, की इतनी बड़ी गलती को इतनी सहजता से माफ कर दिया।’

वह भी इतने बड़े ओहदे पर होने के बाबजूद इतनी संवेदना! इतनी करुणा! शायद यही सच्चा प्यार है। नीलू बोलते बोलते भावुक हो गई।

सिया कुछ पल के लिए फिर कहीं खो गई ‘और उस मजदूर का इतना बड़ा अहम कि उसने अपनी पत्नी को फिर से उस प्रेमी की तरह खुलेआम लोगों के सामने छोड़ दिया, गलती तो दोनों औरत ने की थी, बस इंसानों से जुड़े जज्बातो और संवेदनाओं का कमाल है वो उनसे कितना प्रभावित होता है।और रिश्तों को कितना प्यार का करता हैं।

Kahani Bhram आपको कैसी लगी प्रतिक्रिया अवश्य कीजिएगा। 

लेखिका रिंकी जैन

 

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