इक झटके में ठन ठन बाबा, हमको आज बना डाला बहुत हो उत्पाती मोदी जी, हाय राम क्या कर डाला। रह रह कांप रहा है सीना, प्राण हलक में आता है छप्पन इंची छाती लेकर, ऐसे कोई डराता है। ये कैसी है साफ़ सफाई, कैसा स्वच्छता का अभियान गुड़ को गोबर बना दिया है,
बाल दिवस पर कविता – उड़ती बात के सभी पाठकों को स्नेहिल अभिवादन। दोस्तों कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। और यह भी कहा जाता है कि बच्चे ही किसी भी देश का स्वर्णिम भविष्य होते हैं। हमारे देश में प्रतिबर्ष 14 नवम्बर को बाल दिवस जिसे आजकल की आम भाषा में
जंक फूड दुश्मन है बच्चो, सेहत नहीं ख़राब करो गड़बड़ झाला झट पट भोजन, बचपन ना बर्बाद करो। कितने सारे स्वाद भरे, व्यंजन बनते हैं भारत में पुआ परांठे पूरण पूरी, पपड़ी हर घर आँगन में। चटक चटपटे सेव सिमेंय्या, रसगुल्ले मन ललचायें गुपचुप छुप छुप खूब उड़ायें, दूध जलेबी भी खायें। फ़ूड अटपटा बजन
-नमस्कार दोस्तो, संस्कारधानी कला परिषद् द्वारा होली मिलन के सुअवसर पर आयोजित इस सुरों से गुनगुनाती हुई शाम में मैं अमित ‘मौलिक’ आज के कार्यक्रम के अतिथि गण, विशिष्ट जन एवम आप सब संगीत प्रेमियों का बहुत बहुत स्वागत करता हूँ-एहतराम करता हूँ । आज की इस सुरीली शाम को सुर बद्ध करने वाली
अब फिर से उम्मीदें बढ़ने लगी हैं तितलियां जो कमजोर थीं उड़ने लगी हैं उमंगों में नईं कोंपलें फूटने लगी हैं मायूसी की दीवारें टूटने लगी हैं धड़कनें ग़ज़ल गुनाने लगीं हैं नई कवितायें भी समझ आने लगीं हैं तो क्या फिर से बहार आई है तो क्या फिर से घटा छाई है बात समझ
माँ सरस्वती वंदना मेरी मैया शारदे माँ मुझे अपना बना लेना तू ममता का समंदर है मुझे कतरा बना लेना। सुरीली मुग्ध सरिताएं मेरे उर में बहा दे माँ ह्रदय में बाँसुरी की धुन ज़रा संगीत भर दे माँ मैं बन जाऊँ मधुर मिश्री मुझे सुर पांचवां देना। ये भी पढ़ें: श्री गणेश
गीत हर राग रंग हर अंतरंग, हर कण में तुम्ही तृण तृण में तुम्हीं हर गाँव-गाँव हो धूप-छांव, हो रात-रात के चाँद तुम्हीं झरने की कल-कल मधुर ध्वनी, पहली-पहली बारिश की नमीं तुम उगते सूरज की लाली, और भौंरे का गुंजन हो तुम्हीं बेला गुलाब की गंध तुम्हीं, तुमहीं हरी घास पै ओस के
ग़ज़ल-ख़फ़ा सारा चमन जला बैठे वो क्यों ख़फ़ा ख़फ़ा बैठे। देर लगी क्यों आने में कब से हम तन्हा बैठे। प्यार से पूछा उसने जो सारा हाल सुना बैठे। गज़ब हुआ उस रात को हम चाँद को चाँद दिखा बैठे। हंगामा क्यों बरपा है जो उसको खुदा बना बैठे। ◆ये भी पढें-इश्क़ के दोहे। प्यार
आज मैं गाऊँ एक कहानी सच्ची तुम्हें सुनाऊं थी राजकुमारी एक पिता मिथलेश शील और त्याग की गाथा गाऊँ सीता था उसका नाम गुणों की खान, थी सुन्दर उसकी काया थी रूप की चर्चा दूर बुद्धि भरपूर, थी धरती माता उसकी जाया ये भी पढ़ें: गंगा नदी पर कविता
कैसे पावन गँगा का इस धरती पर अवतरण हुआ कैसे थे वो भागीरथ परमार्थ का ऊँचा गगन छुआ इक्ष्वाकु कुल के वंशज श्री राम के विरले पूर्वज थे परम प्रतापी सगर नाम के राजा एक अपूरब थे दिकशासन की इच्छा थी मैं चक्रवर्ती सम्राट बनूं क्यों ना अश्वमेघ करवाऊं कुल शासन जयवन्त करूं हुआ