होली पर रोमांटिक कविता । Holi par romantic Poem

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गोरी से होरी कैसे हो,
हफ़्तों के ताने-बानों को
रंगों की पुड़ियाँ हाथों में,
ले आस हुमक अरमानों को
मौके तकना तक तक थकना,
हड़बड़ियों में वो गड़बड़ियां
कैसे भूलें वो दिन गोरी,
कैसे होली की बातों को
गोरी के गुलाबी गालों को,
गालों पर बिखरे बालों को
वो छज़्ज़े वाली खिड़की को,
खिड़की पर सजीं बहारों को
 

 

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वो इंतज़ार कब नैन मिले,
कब नैनन बीच इशारे हों
कैसे भूलें वो दिन गोरी,
कैसे होली की बातों को
वो पौ फटते ही सज जाना,
वो नाप तौल कर जच जाना
बापू की नज़रों से बचके,
घर से चुपचाप खिसक जाना
जेबों में सिमटीं रंगों की,
पुड़ियां-पुड़ियों में ख़्वाब भरे
कैसे भूलें वो दिन गोरी,
कैसे होली की बातों को
 वो भरा मोहल्ला गोरी का,
घर-घर के सभी बुजुर्गों को
होली के बहाने झुक-झुक कर,
पैरी-पौना की रस्मों को
वो एक झलक की बेताबी,
वो दो पहरों तक इंतज़ार
कैसे भूलें वो दिन गोरी,
कैसे होली की बातों को
वो ढेर शरारत आँखों की,
आँखों में उठे सवालों को
कैसे भूलें गुलनार सखी,
कैसे कचनारी गालों को
भाभी की मीठी चिंगुटिया,
देवर जी होली खेली क्या
कैसे भूलें वो दिन गोरी,
कैसे होली की बातों को
 
-होली की रोमांटिक शायरी-
वो गुलालों के धुयें,
वो रंगों की बौछार
वो फगुवारी तानें
वो ढोलक की थाप
वो गोरी की गलियां
वो गाँव की चौपाल
किस तरह भुलायें
हम वो होली का त्यौहार
गोरी तू इतना जुल्म ना कर,
बीती बातों को जाने दे
कुंडी खोलो दरवाजे की,
थोड़ा अंदर तो आने दे
मेरा ना सही तुझको लिहाज,
होली का कुछ तो मान रखो
इक बार गुलाबी गालों पर,
चुटकी भर रंग लगाने दे
क्यों छिपती है ऐसे ना सता,
हूरों की रानी सामने आ
होलीे के रंग सजाये हैं,
मैं रंगू तुझे तू मुझे लगा

 

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