ग़ज़ल-प्यादा मेरी उजरत कम, तेरी ज़रूरत ज्यादा है ऐ ज़िंदगी कुछ तो बता, तेरा क्या इरादा है। दांव पर ईमान लगाकर, तरक़्क़ी कर लेना आज के दौर का, फ़लसफ़ा सीधा सादा है। हड़बड़ी में दिख रहा, ख्वाहिशों का समंदर लहरों में उफान है, आसमां पे चाँद आधा है। ऐ जम्हूरियत तू भी, अब पहले जैसी
एंकरिंग के दो प्रकार (variant) होते हैं। पहला इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंकरिंग (Electronic media Anchoring) और दूसरा मंचीय एंकरिंग (stage Anchoring), मैं इस लेख के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंकरिंग (Electronic media Anchoring) के बारे में कुछ आधारभूत बातें आपको बताना चाहूँगा। भारतीय संविधान के चार आधारभूत स्तम्भों (4 pillar of democracy) में से एक मीडिया है।
ग़ज़ल-कश्मीर उन्हें इतनी शिकायत है, कि सब उनको नहीं देता मेरे हिस्से का मेरा आसमां, उनको नहीं देता। यही अंदाज़ है मेरा, नज़र अंदाज़ करता हूँ जो नामाकूल हैं उनको, तवज़्ज़ो मैं नही देता। नज़र मुझसे बचाकर चल दिये हो, याद भी रखना मुक़द्दर एक सा हर दिन, ख़ुदा सबको नहीं देता। हिसाबी मुआमला था
ग़ज़ल-किस्से लेकर तारे चाँद सुहाना, तेरे आंगन खिलता है। सारे किस्से हमें पता है, गुलशन में क्या चलता है। धूप धुत्त हो छांव में लेटी, तेरे घने गेसुओं की रोज दुपहरी सूरज कुढ़ता, राहदरी में मिलता है। जुट्ट बना कर क्यारीं आयें, नंदन वन के केशर कीं शोख़ कपोलों को छू छू कर, चंदन रंग
कविता-बदल गये हो डबडबाती कोरों से भी देखा, दिखते तो हो तुम! पर वैसे नही जैसे दिखते थे संभवतः तुम बदल गये हो हाँ!! तुम बदल गये हो। पहले तुम्हें आती थी संकेतों की भाषा झूठ सच क्षोभ विषाद सब पकड़ लेते थे। मैं लिख देती थी उंगली से कुछ शून्य में, और
नारी उत्पीड़न पर कविता – प्रस्तुत है यह आर्टीकल नारी उत्पीड़न पर कविता। महिला अत्याचार मानव संस्कृति के आरंभ से ही एक पीड़ा का विषय रहा है। सौंदर्य का प्रतिमान, समर्पण की मिसाल, करुणा की प्रतिमा, सहनशीलता की मूर्ति और ममता का सजीव ईश्वरीय प्रतिबिंब नारी पर पुरूष प्रधान समाज अत्याचार करता आ रहा है।
ग़ज़ल-सियासत पत्थर दिल में इश्क़ की चाहत, धीरे धीरे आती है शाम ढले ख़्वाबों की आहट, धीरे धीरे आती है। नया नवेला इश्क़ किया है, तुम भी नाज़ उठाओगे रंज-तंज़ फ़रियाद शिक़ायत, धीरे धीरे आती है। तुम तो आओ सब आयेंगे, चांद सितारे तितली फूल ज़ीनत मस्ती ज़िया शरारत, धीरे धीरे आती है। ज़हर
ग़ज़ल-आशना जबसे उनसे हुई मेरी अनबन तबसे सूना है शाख-ए-नशेमन। कैसे कह दूँ के आ मेरे ज़ानिब बेमज़ा हो गया हुँ मैं जानम। जो महक ना बिखेरे फ़िज़ा में क्यों सजाये कोई ऐसा गुलशन। यूँ है आराइश-ए-आशियाना जैसे उलझा हो कांटों से दामन। फ़ासिला कुछ ज़हद ने बढ़ाया बेख़ता था सदा से ये मुल्ज़िम।
भारत में चलेगी जापानी बुलेट ट्रैन। अभी अभी जापान के माननीय प्रधानमंत्री जी भारत के दौरे पर पधारे थे। इस राजनैतिक दौरे की महत्वपूर्ण उपलब्धि भारत मे बुलेट ट्रैन चलाने के प्रोजेक्ट पर अनुबन्ध और जापान द्वारा एक भारी राशि बहुत ही कम प्रतिशत पर कर्जे के रूप में उपलब्ध कराना रही। निश्चित रूप
भाषण की शुरुआत कैसे करें – सभी पाठकों को उड़ती बात की तरफ से हार्दिक अभिवादन। दोस्तों आज से पहले हम सबने ही भाषण की शुरुआत कैसे करें विषय पर बहुत सारे वीडियो देखे होंगे और लेख पढ़े होंगें। सभी दावे तो करते हैं, काफी कुछ मोरल भी बढाते हैं लेकिन ट्रिक्स कोई नहीं बताता।