महिला उत्पीड़न के विषय पर एक खरी खरी कविता। Poetry on Women’s Harassment

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नारी उत्पीड़न पर कविता – प्रस्तुत है यह आर्टीकल नारी उत्पीड़न पर कविता। महिला अत्याचार मानव संस्कृति के आरंभ से ही एक पीड़ा का विषय रहा है। सौंदर्य का प्रतिमान, समर्पण की मिसाल, करुणा की प्रतिमा, सहनशीलता की मूर्ति और ममता का सजीव ईश्वरीय प्रतिबिंब नारी पर पुरूष प्रधान समाज अत्याचार करता आ रहा है। मैंने इस रचना नारी उत्पीड़न पर कविता  , महिला अत्याचार पर कविता, नारी पर अत्याचार कविता के माध्यम से अपने विचारों को कविता में पिरोने का प्रयास किया है। आशा करता हूँ की आप सब सुधि पाठकों को रचना पसंद आयेगी। 

नारी उत्पीड़न पर कविता

कविता-प्रश्न तो है!

चरित्र और मर्यादा!
जिसने भी गढ़े होंगे ये शब्द,
बड़ा व्यापक हेतु रहा होगा।
शायद आचार का निर्धारण
और निष्ठा का पालन कहा होगा।
प्रतिपादित किये गये होंगे
सम्भवतः ‘सर्व गुण संपन्न’
मदांध-नियंताओं और
सामंतो के लिये।
किन्तु थोप दिये गये,
पुरुषों के पैरोकारों द्वारा,
कुशलतापूर्वक स्त्रियों पर।
समर्थन मिलना ही था, मिला
और समय के साथ बन गया
यह एक अपरिहार्य संस्कार,
नाम दे दिया गया संस्कृति का
परिप्रेक्ष्य विलुप्त है, क्यों भला ?
प्रश्न तो है, पर अनुत्तरित,
सदा की तरहा।

विषय संवेदनशील है
और इतिहास भी,
सिहरन उठती है
यदि पलट लें कभी
पन्ने उन किताबों के
जिनमें भरे पड़े हैं
किस्से अतिवाद के
उत्पीड़न के, विलासता के।
सन्धि का उपहार स्त्री
जुये में दाव स्त्री
सत्ता का विस्तार स्त्री
युद्ध का संहार स्त्री
संभवतः
बहुमूल्य वस्तु की भांति
प्रबंधन किया जाता होगा
स्त्रियों का।
जैसे अन्य भौतिक मूल्यवान
वस्तुओं का किया जाता था
स्वयं का मूल्य बढ़ाने हेतु
जिससे अहम की तुष्टि तो हो ही,
समर्थता की भी पुष्टि हो
वस्तुतः सामर्थ्य ही तो सबलता
को सत्यापित करता था
शायद शासन करना,
नियंता बनना
यही अंतिम शगल है
पुरुष जाति का, क्यों भला ?
प्रश्न तो है, पर अनुत्तरित,
सदा की तरहा।

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किस बात की पीड़ा है!
क्यों है ये छींटाकशी?
तुम्हारी जर्जर हो चुकीं
मान्यताओं की सत्ता
अब कंपायमान हो रही है?
इसलिये कि तुम्हारी परिधियाँ
अब चलायमान हो गईं हैं?
अरे यह तो होना ही था!
क्योंकि नियम
एकपक्षीय बनाये गये हैं।
और हाँ, यह महज़
एक लाँछन बस नही है,
सच कहूँ तो
तुम्हारा पौरुष
अपने वास्तविक रूप में
आ जाता है
जब तुम होते हो सक्षम।
सत्ता, सबलता, संपन्नता
और सहूलियत, एक पल में
तुम्हारे चरित्र को,
मर्यादा के आडंबर को
उजागर कर देती है।
तय है कि रुकने वाली नही है
यह अहद।
नारी का पूर्ण सामर्थ्य
देखना अभी शेष है,
और जो शेष है वही विशेष है।
पद्मिनी से सरोजिनी तक
इंदिरा से अरुंधति तक
यह यात्रा अभी शुरुआती है
अभी तो शीर्ष देखना बाकी है
इसमें तनिक भी संशय नही
कि नारी को शिखर
मिलेगा या नहीं,
वो तो मिलेगा
वो छुयेंगीं शिखर को
हायतौबा के साथ भी
हायतौबा के बाद भी।
क्यों भला? प्रश्न तो है,
पर अनुत्तरित,
सदा की तरहा।

यह आर्टीकल नारी उत्पीड़न पर कविता कैसा लगा। प्रतिक्रिया अवश्य दें। 

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