झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता : Kavita Jhanshi ki Raani lakshmi bai, jhansi ki rani lakshmi bai par kavita in hindi
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता – तो आपने पहले भी पढ़ी होगी, कई रचनाकारों की कवितायें पढ़ीं होंगी लेकिन यह कविता झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता महज़ एक कविता नहीं हैं उनका पूरा जीवन वृतांत है, उनकी लौहमर्षक महागाथा है। अगर आप यह झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता पूरी पढ़ लेंगें तो मेरा दावा है कि आपकी आँखें नम हो जायेंगीं, आपके बाजू फड़क उठेंगें। अनुरोध है कि रचना अंत तक पढियेगा। और अपनी कीमती प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में अवश्य दर्ज कीजियेगा।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता
चलो गायें एक महारानी की गाथा गायें
जिसकी थी ऊँची शान मेरु सा मान,
अमर बलिदान की याद दिलायें
था एक भदैनी ग्राम बड़ा था नाम,
जहाँ थे लोग निराले
थे निकट बनारस धाम देश पर जान,
लगाने वाले थे मतवाले
वहाँ रहते मोरोपंत स्वभाव से संत,
एक थी कथनी करनी
भागीरथी नारी महान गुणों की खान,
थी पावन गंगा जैसी पत्नी
हेमंत ऋतु की रात सर्दी की बात,
पक्ष कृष्णा शुभवाला
उन्नीस नवम्बर दिन सौ अठरा सन,
वर्ष पैंतिसवा बड़ा निराला
नवकुंज महकते थे लहकते थे,
खुशनुमा मौसम चहका
लो आई नवेली रात मिली सौगात,
मंद झोंकों से आलम महका
किलकारी गूंज गई लो झूम गई,
कि जनता देखा देखी
श्री मोरोपंत के घर एक सुन्दर,
जन्म ली बिटिया बहुत अनोखी
मणिकर्णिका रक्खा नाम मनु उपनाम,
बड़ी थी चंचल बाला
संकेत विलक्षण थे जो लक्षण थे,
देखकर घबड़ाये पितृ माता
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पत्नी का हुआ विछोह था सदमा घोर,
ना तुम बिन लालन होगा
थी उमर चार ही साल बिपति जंजाल,
मनु का कैसे पालन होगा
श्री नाना धूधु पन्त बड़े गुनवंत,
बिठूर के बाजीराव
श्री मोरोपंत उदास पहुँच गए पास,
पकड़ लिये जाकर उनके पाँव
मैं हूं गरीब तुम ताज तुम्ही हो आस,
बहा आँखों से पानी
मैं सौंप रहा हूं आज मेरे महाराज,
आपको अपनी बिटिया रानी
नाना थे करूणा धीर बड़े गंभीर,
मुग्ध कन्या पर होये
फिर दिया छबीली नाम मुखर मुस्कान,
पन्त तू क्यों बेकार में रोये
यह राजकुमारी है हमारी है,
पन्त ना चिंतित रहना
नाज़ों से पालूंगा संभालूंगा,
शल्य तुम कुछ ना किंचित करना
महलों में पली बढ़ी-लड़ी वो लड़ी,
सैन्य से सेनापति से
शस्त्रों से बड़ा लगाव युद्ध से चाव,
झूझना भाये उसे विपति से
कैसे हो अरि का नाश नीति हो ख़ास,
कि कैसे वार करेंगे
कैसी व्यूह रचना कहाँ हटना,
कहाँ से शत्रु घात करेंगे
मल्लों से भिड़ जाना कि लड़ जाना,
दांव पेंचों की रचना
फुर्ती पर देती जोर चपल पुरजोर,
शौर्य की देवी का क्या कहना
तलवार की कितनी धार हो कैसा वार,
कहाँ पर ढाल रहेगी
नाना थे क़ुछ हैरान कि ये नादान,
ना जाने क्या मुश्किल कर देगी
कंठस्थ जुबानी थीं कहानी थीं,
वीर नृप की गाथाएं
क्या वीर शिवाजी थे क्या राणा थे,
थी कैसी उनकी शौर्य कथायें
महलों में आई बहार मनु का ब्याह,
शगुन झाँसी से आया
राजा गंगाधर राव का शुभ प्रस्ताव,
दूत हर्षित हो करके लाया
तोरण थे बड़े विशाल ढोल पर ताल,
झाल पर झाल सवारी
जलसा था बड़ा अपार सजीं सब नार,
झूम कर नाची दुनिया सारी
चारण गाते गुनमाल है नेह विशाल,
तुम्हारा नाना भारी
निज से बढ़कर जाना बहिन माना,
मनु की दुनिया दीनि सँवारी
जोड़ी मनमोहक थी अलौकिक थी,
रुक्मणी कृष्ण से भाये
ज्यों पार्वती को शिवा निशा को दिवा,
सिया को राम जी ब्याहने आये
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ससुराल को किया प्रणाम प्यार का नाम,
मिला था लक्ष्मी बाई
थीं वैभव से आकंठ स्वयं बैकुंठ,
से चलकर, कुल में लक्ष्मी आई
नित ही नित मंद समीर ख़ुशी के तीर,
बही आनंद की धारा
लक्ष्मी थी बड़ी प्रसन्न था गदगद मन,
गर्भ में कुल का गौरव आया
था मुदित राजसी मन सभी जन जन,
थी घर घर यही कहानी
कुछ चार महीने मान हुआ अवसान,
शून्य हो गइ नन्ही ज़िन्दगानी
बिजली सी टूट गई थी रूठ गई,
ख़ुशी महलों में मातम
राजा दुःख सह न सके सहज ना रहे,
रोग से ग्रसित हो गया जीवन
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