झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता : Kavita Jhanshi ki Raani lakshmi bai, jhansi ki rani lakshmi bai par kavita in hindi

Buy Ebook

राहत से भरा सुझाव था आंनद राव,
को दत्तक पुत्र बना लो 
अब और कोई ना जुग्त यही उपयुक्त,
भ्रात का पुत्र उसे अपनालो

दुष्कर था देश का हाल फिरंगी चाल
ईस्ट इंडिया की कंपनी 
वारिस के बिना ना ताज ना कोई राज,
छोड़कर जाओ सत्ता अपनी

बक्सर पर करी चढ़ाई नृशंश लड़ाई,
प्लासी को कब्जाया 
मैसूर मराठा जंग विकट हुड़दंग,
नदी सतलुज तक दुश्मन आया

उत्तर में गोरखपुर क्या अमृतसर,
सिंध पंजाब बचे ना
दिल्ली में दमन किया बरार लिया,
अवध कश्मीर भी हमसे छीना

दुश्मन था एक विशाल हमारा हाल,
राज हुए टुकड़े टुकड़े 
रुसवा थे सरे बजार लो शाही हार,
फिरंगी बेचते जेवर कपडे

डलहौजी हुआ मुखर भिजाई खबर,
इसे अनुरोध ना मानो 
शासन से निवृत्तमान एक अनुदान,
दिलाऊंगा प्रतिमाह ये जानो

बहुतेरे किये प्रयास ब्रितानी ख़ास,
बुलाकर रस्म कराई
पर ब्रिटिश बड़े थे धूर्त किसी भी रूप,
उन्होंने दत्तक प्रथा ना मानी

किस्मत की मार पड़ी थी निष्ठुर घड़ी,
पति शैया पर सो गए 
तन्द्रा से बिलग हुए वो अलग हुये,
राम के थे वो राम में खो गए

स्तब्ध हुई रानी पती हानि,
पुत्र भी साथ रहा ना
मुश्किल में सिंहासन है अरि आसन्न,
ये संकट टालूं मगर टले ना

अंग्रेजो का था जोर घोर चहुँ ओर,
थी उनकी मंशा काली 
छल कपट और षड्यंत्र थे उनके मन्त्र,
झाँसी पक्के में हाथ है आनी

मेरठ में मचा बवाल सुवर की खाल,
गाय का मांस है अंदर 
यह कारतूस स्वीकार नहीं सरकार,
उठ गया सेना बीच बवंडर

पलटन थी बहुत बड़ी ठेस गहरी,
द्रोह भड़का था अंतर 
भारतीय सैन्य समूह क्रांति की रूह,
हो गया बागी क्रोध भयंकर

सन सत्तावन का साल ठोक कर ताल,
देश मैदान में आया 
सब जागे वीर सपूत क्या जन क्या भूप,
फिरंगी शासन क़ुछ घबड़ाया

रानी को मिल गया वक्त बड़ा उपयुक्त,
गुप्त इक सैन्य बनाया 
नर नारी सब शामिल हुए हिलमिल,
प्रशिक्षण कड़ा उन्हें दिलवाया

इतने में खबर मिली कि सेना चली,
ओरछा से दतिया से 
अपने लड़ने आये ना शरमाये,
बिडम्बना थी क़ुछ भूप कृपण थे

फिर हुआ सिंहनी नाद लहू का स्वाद,
चखा दुष्टों ने रण में 
क्षत विक्षत हो भागे कृपण सारे,
जीत का डंका बजा समर में

इस ओऱ सुअवसर ताक ब्रिटिश नापाक,
बढ़ चले दल बल लेकर 
यह एक अकेली नार युद्ध के द्वार,
कि सेना चूर मिलेगी थक कर

ह्यूरोज ने करी चढ़ाई थी फौजें आईं,
कई तोपें तनवादीं
यह आखिरी मौका है ना धोखा है,
समर्पण कर दो लक्ष्मी बाई

रघुनाथ सिंह दीवान थे बड़े सुजान,
गज़ब थी उनकी माया 
ह्यूरोज ब्रिटिश शैतान बड़ा हैरान,
रानी की ताकत समझ ना पाया

फिर हुआ शंख का नाद गजब उन्माद,
तोंपो के खुले दहाने
जब उड़े ढेर के ढेर वो वहशी शेर,
अकल ह्यूरोज की लगी ठिकाने

झुंडों में पशु धावा सर्प बाधा,
कभी पत्थर बौछारें
गोरों की नींद हराम ना पल आराम,
वो आतंकित होकर घबराने

तात्या जी टोपे आये थे सेना लाए,
बड़ी इक बीस हज़ारी 
रानी का बढ़ गया बल मिला संबल,
मिली थी बुझतों को चिंगारी

हफ़्तों तक चली लड़ाई समझ ना आई,
उदास कयास लगायें
रानी थीं दुर्ग अभेद्य तोप को भेद,
कहाँ से कैसे सेंध लगायें

लन्दन से बुलवा लीं बड़ी वालीं,
तोप, बौराये ब्रितानी 
विध्वंशक उनकी मार एक दीवार,
किले की तोड़ी हुई कहानी

आंगें पढ़ने के लिये पेज 3 पर जायें-

Leave a Reply