प्यार में होने की रोमांटिक कविता। प्यार हो जाने के अहसास पर रोमांटिक कविता। Romantic Poem of being in Love। Poem of falling in Love

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। तुम्हारा प्यार ।

ये तुम्हारा प्यार
मुझमें,
मिश्री की तरह
घुल रहा है
आतुरता और संशय के बीच
कुछ तौल रहा है
तुल रहा है
पगडंडी निर्मित हो रही है
निर्मल घट से
अंतस पट तक
सरयू बहने को उत्सुक है
नेह निलय से
ह्रदय तट तक
माना कि अदृश्य है सजलता
माना कि शुष्क है तरलता
लेकिन
अनंत हैं संभावनायें
तुम आंगे तो बढ़ो
छुओ तो मरुस्थल को
रो देगी दग्धता
तर होंगीं दरारें
बह उठेगी विह्लता
अभी रेत ही रेत है
किन्तु,
कभी सिंधु था पलता
तुम्हें आना होगा
चलकर नही, उमड़कर
और सहलाना होगा
सुप्त सागर को
फिर ज्वार उठेगा
भयभीत मत होना
आवेग से प्रचंडता से
तुम्हें लूटेगा
और खुद लुटेगा
तूफान मचलेगा
तभी तो
सुधा निकलेगा
कुछ तुमको पिलायेगा
कुछ खुद पी लेगा
प्रिय ध्रुवनन्दा
ख़्वाबों में ही सही
पर यह
मौलिक सिंधु जी लेगा।

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। पड़ाव ।

ये चालीस का मुकाम
मुकाम नही लगता
पड़ाव समझे थे हम,
इतना आसान नही लगता।
ज़िन्दगी के बदलते मायने
ये नीरवता के आईने
ढेर रिक्त स्थान
निर्रथक सा जहान
मन के अनमने कोने
सूनेपन के बिछोने
कभी ज़मीं
अपनी नही लगती
तो कभी आसमान
नही लगता
क्यों किसी की तलाश है
क्यों किसी से आस है
भीड़ है चारों तरफ
कोई नही पास है
उजरत की अलामत
जद्दोज़हद मलामत
थक गये हैं पर
कह नही सकते
दौड़ते रहो चलो मत
लड़ते रहो गिरो मत
और गिरे बिना
सह नही सकते
अनचाही कसौटियाँ
सूद की फिरौतियाँ
बस तुम बने रहो महान
इम्तिहान ही इम्तिहान
और दिये बिना
रह नही सकते
ना जाने ये कैसी होड़ है
न जाने कहाँ तक दौड़ है
बस नीरसता की बसाहट है
भौतिकता की सरसराहट है
ऐसे में कोई लहर उठे
ऐसे में खुद की खबर उठे
ऐसे में कुछ जाग जाये
ऐसे में दुःख भाग जाये
तो क्या कठिनाई
तो क्या हर्ज है
आखिर
अपने प्रति भी तो
खुद का कुछ फ़र्ज़ है
इसमें लोलुपता कैसी
इसमें कामुकता कैसी
नहीं, यूँ परेशां न होना
तुम सज़ा दो अपना घर
महका दो शाम-ओ-सहर
भर दो अपना रीता कोना
तुम्हें हक है
कि तुम ज़िन्दगी को
जी भर के जी लो
यूँ सदा
विष ही न पीते रहो
कभी कभी मौलिक
अमृत भी पी लो

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