कविता-मैंने कब कहा/Kavita-Maine kab kaha

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मैंने कब कहा 
तुम मेहनत से मिले हो 
तुम तो अप्रतिम गुलाब हो 
ह्रदय की बंजर भूमि पर 
नैमत से खिले हो 
इसमें बेईमानी
क्यों लगती है 
तुम्हें गलत बयानी
क्यों लगती है 
तुम तो सौभाग्य हो 
तुम शुभ संयोग हो 
अच्छे अच्छे ग्रहों के 
तुम मिलन का योग हो 
मेरे निकट आये तुम 
सचमुच बड़े उदार हो 

 

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बेतरतीबी दुरुस्त कर दी 
खुशियों के पहरेदार हो 
मुझ साधारण को
‘मौलिक’ कर दिया 
महज इकाई था
यौगिक कर दिया 
तुमसे अनुनय है
यूँ खुश्क मत रहो 
अनुरक्ती तीव्र
ही रहने दो 
अकारण ही
रुष्ट मत रहो 
दिल से संशय
साफ करो 
उदारमना 
हो सके तो मुझे
मुआफ करो।

 

 

 

 

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