तिरंगा शायरी – तिरंगे की शायरी, तिरंगे पर शायरी, तिरंगे के लिए शायरी, तिरंगा पर शायरी

तिरंगा शायरी – उड़ती बात के सभी चाहने वालों को जय हिन्द। मित्रों, अगस्त का महीना बसंती रंग में रंग जाने का महीना होता है। जी हाँ, इस माह में 15 अगस्त का वो ख़ास राष्ट्रीय त्योहार आता है जिस दिन भारत देश को 200 बर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्र देश के रूप में सम्पूर्ण विश्व में आधिकारिक मान्यता मिली। और क्रूर फिरंगियों का देश से पूर्णतया पलायन हुआ। इस दिन को हम स्वतंत्रता दिवस के रूप में पूरे हर्षोउल्लास के साथ मनाते हैं। स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में तिरंगा शायरी, तिरंगे के लिए शायरी, तिरंगा पर शायरी का प्रयोग शुभकामनाएं प्रेषित करने के लिए, साथ ही मंचीय उपयोग के लिए किया जाता है।
इस पहले भी गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर मेरे द्वारा लिखी गईं तिरंगा शायरी काफ़ी पसंद की गईं और सोशल मीडिया पर शेयर की गईं। आशा है की यह आर्टीकल तिरंगा शायरी भीआप सबको पसंद आयेगा।
तिरंगा शायरी
ये हिन्द था आबाद, ये आबाद रहेगा
जलवा युगों युगों, तलक ये शाद रहेगा
लहराता रहेगा चमन में, यूँ ही तिरंगा
ऐसे ही ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद रहेगा।
फिजायें ले सुगंध, दूर चमन से आईं
फुहारें घोल के, गुलकंद गगन से आईं
हमारी शान तिरंगा, जो खुल के लहराया
हवायें मंद मंद, झूम-झूम के आईं।
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सवाल पूछ लो सब के, ज़बाब मिलते हैं
वतन के बाँकुरे सब, ज़िंदाबाद मिलते हैं
शहीद कितने हो गये, निसार हँसते हुये
तिरंगा गौर से देखो, हिसाब मिलते हैं।
ख़ुशी से रजनीगंधा बन, सुगंधा झूम लेती है
महक आकाशगंगा से, ज़मीं तक घूम लेती है
हवा हर ओर से, झौंकों में ढलकर आती जाती है
गगनचुम्बी तिरंगा को, ख़ुशी से चूम लेती है।
बसंती रुत चमन से मांगकर के, इत्र मल जाये
घटा अमृत बना कर के बरसने को, मचल जाये
तिरंगे की गज़ब है शान जब, लहराये अंबर में
दिशायें होड़ करतीं हैं, हवा इस ओर चल जाये।
मोहब्बत कितनी करते हैं, ज़माने को दिखा देंगें
इबादत कैसी होती है, किसी दिन हम बता देंगें
यही है आरज़ू इक दिन, तिरंगा हाँथ में लेकर
वतन की शान की ख़ातिर, ख़ुशी से सर कटा देंगे।
नज़र भर भर सितारे, तेरे गुलशन में सजा दूँगा
समंदर भर मोहब्बत, तेरे कदमों में बिछा दूँगा
मुझे अगले जनम में फिर, तिरंगे का वतन देना
ऐ भारत माँ मैं तेरी राह में, मोती लुटा दूँगा।
मलंगा हो के नाचूँ, बेख़ुदी सी होने लगती है
कि गँगा आँख से गिर, सरजमीं को धोने लगती है
अलग तासीर है कैसे बताऊँ, तीन रंगों में
तिरंगा हाँथ में आये, तो सुध-बुध खोने लगती है।
बड़ा अफ़सोस होता है, कि हम मग़रूर कितने हैं
तरक्की ख़ुद की करने में, कि हम मशरूफ़ कितने हैं
तिरंगे के लिये जिनने, लहू अपना बहाया है
उन्हीं बलिदानियों को आज, हम सब भूल बैठे हैं।
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मै एक शायरबाज हू
Bahut hi sunder Kavita…..
बहुत बहुत धन्यवाद आभार आदरणीया सोनिया जी। जय हिंद
जय हिन्द
बहुत बहुत धन्यवाद आपका। जय हिंद
मन को छू जाने वाली बेहतरीन शायरी,ऐसे ही उम्दा लिखते रहे आप जैसे रचनाकारों की वजह से ही मन में सकारात्मक विचारों का सैलाब उमड़ा हैं। आभार इसके लिए।
बहुत बहुत धन्यवाद जितेंद्र जी। आपकी दुआयें ऊर्जा प्रदान कर गईं। आभार