उदारमना, तुम्हें क्षोभ किस बात का मैं तो निर्जन में पनपा एक दुर्बल तनका पौधा हूँ जो कभी बड़ा ही नहीँ हुआ अभी ढंग से खड़ा भी नहीँ हुआ सदा निराशा में बिंधा चंद टहनियों की जवाबदारियों में बंधा राह तकता हुआ किसी अन्जाम की किसी परिणाम की, यकबयक तुम्हारे प्रकाट्य से जीवन में ढंग आ गया
मैंने कब कहा तुम मेहनत से मिले हो तुम तो अप्रतिम गुलाब हो ह्रदय की बंजर भूमि पर नैमत से खिले हो इसमें बेईमानी क्यों लगती है तुम्हें गलत बयानी क्यों लगती है तुम तो सौभाग्य हो तुम शुभ संयोग हो अच्छे अच्छे ग्रहों के तुम मिलन का योग हो मेरे निकट आये तुम सचमुच बड़े
बूढ़ा पेड़ कनेर का, पनघट के था पास रोज़ सबेरे मिलन की, करते थे हम आस मुट्ठी भर के दूब ली, फूल चमेली तीन भेंट में दे के हो गये, बातों में तल्लीन लोहडी का मेला गये, मंगल का बाजार काका जी की गोलियाँ, भूल गये हो यार इमली पत्थर पीस के, चटखारे छै सात