चलो नई मिसाल हो,जलो नई मशाल हो, बढो़ नया कमाल हो, झुको नही, रूको नही, बढ़े चलो, बढ़े चलो. .बढ़े चलो, बढ़े चलो.. प्रिय सदस्य गण, एक गौरवशाली जीवन जीने के लिये मनुष्य हमेशा ही स्वाभाविक रुप से श्रेष्ठता और सम्मान को अर्जित करने का प्रयास करता है जिससे विशिष्टता का अहसास होता है और
फलक से गुनगुनाती आईं हैं कुछ बूँदें लगता है कोई बदली किसी पायजेब से टकराई है कम्पनी के उत्पाद लांचिंग का आमंत्रण स्नेही स्वजन, सौंदर्य बोध से भरी गुनगुनाती हुईं बूँदें मानव मन को सदा ही आकर्षित करतीं आईं हैं। यह सच है कि सौंदर्य की परिधि अपरिमित है। अपरिभाषित है। लेकिन मानवीय कलात्मकता एवम
स्नेही स्वजन, खुशी एक शब्द मात्र नहीँ है। और इसे शब्दों में बयान करना आसान भी नहीँ। हमने प्रण किया है एक ऐसी रिश्तों की दुनिया बनाने का जहाँ दिलों को मीठा करने वाली, सौगातें भरने वाली नेमतों की श्रृंखला तो आरम्भ होती है लेकिन यह सुखद यात्रा अंतहीन हो जाती है। आपकी विश्वशनीय
Draft-A स्नेहिल स्वजनों, आज पुनः यह कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि हमारे बार्षिक कार्यक्रमो का एक बड़ा आयोजन…………………….का कार्यक्रम सफलता का एक बड़ा इतिहास बनाते हुए सम्पन्न हो गया है। कितनी भी ऊहापोह रही परन्तु मुझे अपने ग्रुप के कर्मठ पदाधिकारियों, कार्यकारिणी एवम प्रतिबध्दत कार्यकर्ताओ पर कभी भी संदेह
स्नेहिल सदस्यगण, आज मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही कि हमारी संस्था…………………..का बड़ा आयोजन प्रतिवर्ष एक सामूहिक बड़ी यात्रा का आज सुखद समापन हो गया है। पूर्व नियोजित योजना, एक अप्रतिम स्थान का चयन, एक बड़ा होमवर्क, विशिष्ट पूर्व तैयारियाँ एवम सभी गणमान्य दम्पति सदस्यों की सुविधा एवम सुगमता का ध्यान रखना ऐसे विभिन्न प्रकार
कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नही ठौर प्रिय स्वजन, यह सर्व विदित है कि वेदों एवम सनातन धर्म के अनुसार भारतवर्ष की प्रथम एवम प्राकृत भाषा संस्कृत थी जिसे देवोपुनीत भाषा भी कहा जाता है. संस्कृत से ही सुसंस्कृत शब्द की
“चलो करें हम तीर्थ वन्दना, अवसर बड़ा महान है जहाँ जीव को मिले शान्ति, वही तीर्थ स्थान है” प्रिय भक्तजनों, प्रेम और सौहार्द्र का प्रतीक होली के सतरंगी महापर्व में अगर अपने इष्ट की भक्ति का पावन रंग का अमृत तुल्य मिश्रण हो जाये और उस अमृत तुल्य मिश्रण की फुहार हम पर
हमारे संचालक द्वय………………….जी और……………………जी को बहुत बहुत धन्यवाद। मंचासीन गण मान्य विभूतियों को समर्पित इन चार पंक्तियों के साथ मै अपनी बात शुरु करना चाहूंगा कि. . ‘कहाँ हैं ऐसे लोग जो निस्पृह रण में जूझने जाते हैं परहित में निजहेतु त्यागकर प्यार बाँटते जाते हैं आशाओं के पुष्प पल्लवित होते इन्हीं मालियों
बिघ्नो का नाश होता है महावीर नाम से निर्भय बनो और जय कहो श्री वीर प्रभु की सब मिल के आज जय कहो श्री वीर प्रभु की मस्तक झुका के जय कहो श्री वीर प्रभु की स्नेहीजनों, जैसा कि आप सबको विदित है कि प्रतिबर्षानुसार इस वर्ष भी युग नायक, देवों के
‘ श्याम सलोने राधा गोरी बरसाने का हुल्लड़ था रंग रंगीले फगुआ होली शहरों वाला अल्हड़ था जब रंग बरसा झूम गये सब धूम मची थी नगरी में भक्त मगन थे पी के नाचे अमृत वाला कुल्हड़ था अभी तक एक स्वप्न सा प्रतीत होता है कि होली मिलन का कार्यक्रम इतना अभिनव एवम