बेटी पर कविता । Poem on daughters । बेटियों पर प्यारी हिंदी कविता

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सदियां बीत गई युग बदले फिर भी समझ ना पाये
बेटीं हैं बेटों से बढ़कर बेटी भाग्य जगाये।।
बेटी होती सोन चिरैया जिस घर उड़कर आये
वह घर जन्नत बन जाता है उस घर ज़ीनत आये
कैसी है ये रीति जगत की किसने सोच बनाई
बेटे से ही वंश चलेगा बेटी होती पराई
बेटी नवल कुंज है जिस पर फूल नेह के खिलते
हिम का छोर सिंधु से मिलता वैसे दो कुल मिलते

 

 

 

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बेटी से त्यौहार चहकते आलम का क्या कहना
बेटी रिश्तों की खुशबु है जाने सिर्फ महकना
यह दायित्व नहीं है मित्रो यह तो है जागीरी
किस्मत वालों को मिलती है बेटी की ताबीरी
बेटी होतीं सुख की बदली बरसें गुल खिल जाये
बेटीं हैं बेटों से बढ़कर बेटी भाग्य जगाये।।
बेटी है अमृत की धारा बेटी सीप का मोती
बेटी पारिजात की खुश्बू सुरभित पवन बिलोती
बेटीं परीलोक से आकर अपनी छड़ी घुमातीं
तब सौभाग्य उदय होता है जादू सा कर जातीं
बेटीं मरहम सी जख्मों पर बेटीं शहद में मिश्री
बेटीं फूलों की कोमलता तितली की अलमस्ती
बेटीं राग यमन की तानें घुँघरु की रुनझुन हैं
इकतारा की मीठी मीठी अलबेली सी धुन हैं
बेटी से ही रंग महावर बेटी से रंगोली
बेटी से इतराये मिलकर विंदिया चूड़ी रोली
बेटी होती गुड़िया रानी घर को महल बनाये
बेटीं हैं बेटों से बढ़कर बेटी भाग्य जगाये।।
बेटी जो ना होती कैसे कान्हा बंशी बजाते
बेटी ना होती तो कैसे राम धरा पर आते
कैसे राधा प्यारी होतीं कैसे सीता माता
कैसे अवतारी हो पाते जग के भाग्य विधाता
बेटी ना होती तो कैसे लक्ष्मीबाई होती
दुर्गावती अवंती बाई कहाँ पद्मिनी होती
बेटी से बेटी होतीं हैं जो जननी कहलातीं
इसी नियम से वर्तुल बनता सृष्टि चक्र चलाती
ईश्वर ने करुणा ममता की मिट्टी ख़ास मंगाई
हया का रंग चढ़ाया ऊपर ‘मौलिक’ कृति बनाई
बेटी जैसा फूल विधाता दूजा रच ना पाये
बेटीं हैं बेटों से बढ़कर बेटी भाग्य जगाये।।
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