बसंत ऋतु पर कविता । Basant ritu par kavita । बसंत पर कविता इन हिंदी । बसन्त की कविता । हिंदी कविता बसंत ऋतु पर । poem on basant ritu in hindi

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बसंत ऋतु पर कवितामाँ सरस्वती के साधकों को बसंत पंचमी की अतुल्य शुभेक्षायें। मित्रों, हर एक लेखक या कवि का किसी भी घटना, दृश्य या स्तिथि को देखने की दृष्टि या नज़रिया अलग-अलग होता है। उसकी सोच उसकी विचारधारा उसकी शाब्दिक अभियक्ति में, उसकी रचना में झलक उठती है। आज के परिप्रेक्ष्य में जिस प्रकार से स्वार्थलिप्सा और मौका परस्ती इंसान का स्वभाव बन गई है उसको देखते हुये मैंने यह आर्टिकल बसंत ऋतु पर कविता व्यंग्यात्मक शैली में लिखने का प्रयास किया है। एक तंज़ एक कटाक्ष इस रचना में आपको पढ़ने को मिलेगा। जिसका भावार्थ यह है कि जब सारी दुनिया अवसरवादी हो गई है, जब सारे जहान का बाज़ारीकरण हो गया है तो बसंत तुम क्यों नहीं इस अवसरवादिता की प्रवृति को अपना लेते हो। तुम क्यों नहीं बाज़ारीकरण की भाषा बोलकर अपने ठाठ बना लेते हो। एक नया अलग हटके रचनात्मक प्रयास किया है। आशा है आपको पसंद आयेगा।

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बसंत ऋतु पर कविता

हो बसंत तुम बिलकुल भोले
आ जाते हो दिल को खोले
सदा लिये आतुर से होकर
रसवंती के रस के गोले
हो बसंत तुम बिलकुल भोले

तुम ना संभले संभल गयी है
दूर बहुत अब निकल गयी है
देने लेने के मौसम में
दुनिया कितनी बदल गई है

• कविता-नवयौवना

• बसंत पंचमी के आयोजन का आमंत्रण

मधुमास के नियम बदलकर
मतलब की कालिख को मलकर
नयी बयारें नये दरीचों
पर नाची बेशर्मी खुलकर

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उथलेपन का महिमा मंडन
बक्र भाल पर रोली चंदन
भीतर तुच्छ भाव के शोले
हो बसंत तुम बिलकुल भोले

नई अगर कुछ बात कहो तो
रंग बदलकर साथ रहो तो
संशोधन कुछ सकते तो
ढंग बदलकर रह सकते तो

• कविता-कल की ख़ातिर

आओ फिर तो स्वागत है जी
अब तो यही रिवायत है जी
ले दे कर कुछ रीत बना लो
नई हवा कुछ गीत बना लो

नये फूल गुंचे तितली क़ुछ
ख़्वाहिश हो मचली मचली कुछ
इन सबका मकरंद बना कर
शीशी में गुलकंद बनाकर

बेचो अपनी हाट बनाओ
मौलिक अपने ठाठ बनाओ
उड़ो नहीं यूँ उड़न खटोले
हो बसंत तुम बिलकुल भोले।

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