मन की बात पर कविता । Poem on Man ki baat ।

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‘मन की बात’ सत्य हो जाये, ऐसा इक परिवेश बने
नेता जब नंबर वन अपना, देश भी नंबर एक बने
यही है मौका आंगे आओ, मिल जुल ऐसा काम करो
विश्व गुरु कहलाने वाला, फिर से भारत देश बने
चाहे जितना भी तप कर लो, शिव संभू क्या कर लेंगे
किया धरा सब अपनों का है, इल्ज़ामों को सर लेंगे
चमन रौंदने वाले ये, दुर्गंध फ़िज़ा में भर देंगे
इन्हें नहीं रोका तो पूरी, नदी विषैली कर देंगे
कालिंदी के विषधर हैं ये, संतो का गणवेश धरे
विश्व गुरु कहलाने वाला, फिर से भारत देश बने
दोहरी बातें करने वाले, जयचंदों की मत सुनना
मेरी बात ध्यान से सुनना, कैसा देश तुम्हें चुनना
शोषित होकर कोस कोस कर, जीना हो तो जी लो तुम
बेईमानों ने अमृत छाना, ज़हर बचा है पी लो तुम
या फिर रोना छोड़ो ज़महत झेलो, तो शुभ शेष मिले
विश्व गुरु कहलाने वाला, फिर से भारत देश बने

 

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पीर बड़ी थी रुधिर बहा था, कंठ कलेजा था आया
भारत माँ बेज़ार हुई थी, अपनों ने दुःख पंहुचाया
मक्कारी से बेईमानी से, बाज़ कहाँ ये आते थे
लूट मार करते थे फिर भी, हमको आँख दिखाते थे
अपने सीना नोच रहे थे, फ़रामोश धर भेष नये
विश्व गुरु कहलाने वाला, फिर से भारत देश बने
मातृ भूमि की रक्षा हेतु, सरहद पर दिन रात लड़े
उन सैनिक से तुलना कर लो, चंद कतारें खड़े खड़े
बिना प्रसव पीड़ा के कैसे, उगे सृजन का बीज नया
लावे में ही तपकर सोना, निखरा कुंदन रूप बना
देश खड़ा हो जाता है जब, तब क्या शंका शेष रहे
विश्व गुरु कहलाने वाला, फिर से भारत देश बने
मौलिक शौर्य चक्र की ओजस, लिये अशोका आये हैं
बल्लभ जैसे लौह पुरुष का, फौलादी ढंग लाये हैं
मोदी जी के एक दांव में, पहलवान सब चित्त हुये
नोट बंद क्या किये पुराने, गुब्बारे सब फिस्स हुये
उठें फुलंगे अंगारों के, फूंको प्रण आवेश नये
विश्व गुरु कहलाने वाला,  फिर से भारत देश बने

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