स्पोर्ट्स डे स्पीच इन हिंदी – खेल दिवस पर भाषण, खेलों के महत्व पर लेख

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स्पोर्ट्स डे स्पीच इन हिंदी – कुछ पाठकों के अनुरोध पर कि मैं उनके लिये स्पोर्ट्स डे स्पीच इन हिंदी लिखूँ, यह आर्टिकल आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। यदि आपको भी किसी खेल प्रतियोगिता, खेल दिवस या खेल से संबंधित आयोजन के लिये भाषण की तलाश हो तो यह लेख स्पोर्ट्स डे स्पीच इन हिंदी आप सबके लिये सहायक सिद्ध होगा।

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स्पोर्ट्स डे स्पीच इन हिंदी

आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि RST के महासचिव परम आदरणीय xyz सर, कार्यक्रम अध्यक्ष …………. के ………….. परम आदरणीय ………….सर, विशिष्ट अतिथि …………. के ………….. परम आदरणीय ………….सर एवं मंच पर विराजित शहर की गणमान्य हस्तियाँ माननीय श्रीमन …….. जी, माननीय श्रीमन …….. जी, माननीय श्रीमन …….. जी, इस खेल दिवस के आयोजन को उत्सव में बदलने वाले, सभी कोच आदि गुरुजन, प्रतिभागी खिलाड़ियों और सभी दर्शकों का मैं …….. की कोच/इंचार्ज….. ह्रदय से स्वागत करते हुये सादर वन्दे मातरम कहती हूँ।

साथियों, यदि खेल की गतिविधि को परिभाषित करना पड़े, उसे एक सूत्र के रूप में पिरोया जाये तो मेरी दृष्टि में यह सूत्र कुछ इस प्रकार से होगा कि…

खेलना-खिलाना-खिलखिलाना-खुलना-खिल जाना..

इस सूत्र का समग्र और अभिमंत्रित शब्द यदि कोई है तो वो निर्विवाद रूप से ‘खेल’ ही है। और आज हम सब खिलखिलाहट से भरे इस अन्तर्विद्यालयीन खेल प्रतियोगिता के आयोजन को सफल बनाने के लिये यहाँ एकत्रित हुये हैं।

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साथियों, कहते हैं कि समय भी समय-समय पर अपने आप को पुनः परिभाषित करता है। रामायण और महाभारत के काल से सम्राट चंद्रगुप्त तक के काल में भारतीय शिक्षा पद्धति में छात्र के सर्वांगीण विकास पर बल दिया जाता था। निश्चित रूप से शैक्षिक पद्धति में सामयिक क्षरण होता रहा किन्तु व्यक्तित्व विकास की शिक्षा पद्धति के प्रारूप को ही प्राथमिक दी जाती रही।

कोई एक नहीं दो नहीं पूरी 72 कलाओं की शिक्षा विद्यार्थियों को प्रदान की जाती थी। जिसमें पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ युद्ध कला, पाक कला, ज्योतिष कला के साथ खेलों को भी उतना ही महत्व दिया जाता था। आज़ादी के बाद से हमारी सोच में परिवर्तन आया और हम..

पढोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे ख़राब।

जैसी संकीर्ण विचारधारा से संक्रमित हो गये। सम्भवतः आज़ादी के बाद देश की वह सामयिक मांग होगी। मैं इस विवाद की गहराई में जाना भी नहीं चाहती। लेकिन इतना अवश्य है कि हम मुख्यधारा से पीछे बहुत पीछे चले गये थे।

खेल तो किसी भी देश के उज्ज्वल और सुदृढ़ भविष्य की नींव हैं। कितनी सहज बात है कि बच्चे तो खेलते ही हैं। वो तो खेलेंगें। वैसे ही जैसे कि नदियाँ बहती हैं। वो तो बहेंगीं ही। हम यदि नदियों के कलकल बहते जल को दिशा दे देते हैं तो बंजर भूमि हरित भूमि में परिवर्तित हो जाती है, बिजली बनने लगती है, प्यास बुझने लगती है। इसी प्रकार यदि हम बच्चों की खेलने की स्वाभाविक प्रकृति को अनुशासित दिशा दे देते हैं, एक सुनिश्चित फॉर्मेट में ढाल देते हैं तो देश को हॉकी के जादूगर ध्यानचंद, क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर मिल जाते हैं।

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आज खेलों को प्राथमिकता देकर चीन जैसे देशों ने विश्व में जिस प्रकार से यश कमाया है वह अन्य देशों के लिये अनुकरणीय है। देश के मान सम्मान से बढ़कर तो कुछ अन्य हो भी नहीं सकता। इस आवश्यकता को यदि मैं पंक्तिबद्ध करूँ तो मैं कहूंगी कि ..

आओ हम सब खेल को, दें ऊँचा आकाश
देश प्रतिष्ठा पायेगा, बच्चे करें विकास
दृश्य बदलता जा रहा, यही समय की माँग
खेलें और खिलायें हम, देश पाये सम्मान।

मैं बहुत हर्षित हूँ कि आप सब गुणीजनों, खेलों की एक्सपर्ट्स शख्सियतों, खेलों की आधिकारिक हस्तियों के गरिमामय सानिध्य में मुझे अपने विचार प्रकट करने का सुअवसर मिला। आप सब की दिव्य उपस्थिति खेलों के पुष्पित होने के शुभ संकेतों का धोतक है। आशा करती हूँ कि खेलों के उन्नयन के पुनीत यज्ञ हेतु जो भी नवनीत आवश्यक होगा वह आप सब सक्षम हस्तियों से इन बच्चों को प्राप्त होगा और होता रहेगा।

जिससे देश को ढेरों धोनी, कोहली, सानिया मिर्जा, तेंदुलकर, मेरीकॉम, पीटी ऊषा मिलें, जो देश के लिये अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में कप जीतकर, देश के लिये स्वर्ण पदक जीतकर भारत का नाम ऊँचा करें। मैं अपनी बात चार पंक्तियों के माध्यम से समाप्त करते हुये, आप सबको आपकी विशिष्ट उपस्थिति के लिये आभार प्रेषित करती हूँ कि..

हमारी चाहत, यदि हॉकी और फुटबॉल हो जाये
हमारा प्यार, क्रिकेट का बल्ला बॉलीबॉल हो जाये
यदि टेनिस कुश्ती, कबड्डी को हमारी तवज्जो मिले
तो बच्चे मिसाल बन जायें, देश निहाल हो जाये।

आप सबका धन्यवाद। जय हिन्द

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