रोमांटिक शायरी ‘कम पढ़ा होता’ । Romantic shayari ‘kam padha hota’

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दिलों में बवाल होंठों पर सवाल रक्खो
ज़माना टेढ़ा है तुम भी टेढ़ी चाल रक्खो

आखिरी हिचकी है बाक़ी तू अभी रहने दे
आखिरी दांव लगायेंगे लगाने वाले

पूछ कर हाल बतायेंगे ज़माने भर को
ये तमाशा भी बनायेंगे बनाने वाले

हमने सूरज भी बनाया है जलाया बरसों
वो चिरागों को हैं खैरात में लाने वाले

अब तो ये रोज का किस्सा है किया जाये
ये ख़ुदा तू ही बता किस तरह जिया जाये

हर जगह तू है तेरी याद ख़्वाब बिखरे हैं
काम फैला तमाम किस तरह किया जाये

 

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हुआ तो है कुछ जो तुम खामोश बैठे हो
बसंत में यूँ तितलियाँ कभी चुप नहीं बैठतीं

गैरते इश्क में सुकून कम बवाल ज़्यादा हैं
चलन में अब ख़्वाब कम हैं सवाल ज़्यादा हैं

मौसम गुज़र गये पर तेरे वादे वैसे ही अड़े हैं
तू जहाँ छोड़ गया था हम वहीँ के वहीँ खड़े हैं

मैं तो मुतमइन था तेरे जताये अफसानों से
तूने ही नज़रें चुराकर सब बेकार कर दिया।

मेरी पैकर-ए-अक्ल-ओ-दानाई सोने नहीं देती
सूरत-ए-हाल कुछ होते जो मैं कम पढ़ा होता

ज़रूरी नहीं कि रोज सज़दे हों रोज नमाज़ें की जायें
लतीफ़े भी सुनाया करो कि यह भी एक इबादत है

सुबह तो रोज़ आती है, ये किस्से रोज़ के ज़ालिम
किसी दिन शाम ना आये, तमाशा बन गया समझो

मैं कतरा हूँ तो हाँ मैं हूँ, समंदर मुझ बिना क्या है
मेरी खुद मौज़ है ताईद क्यों, यूँ सोचना क्या है

दीप जले तो जग भर देखे, घृत युत बाती देखे कौन
चेहरे की रौनक सब देखें, हिये की सुलगन देखे कौन

उसकी इबादत छूट जाये तो मैं नई जुगत लगा लेता हूँ
मैं गुदगुदी करता हूँ और चार बच्चों को हँसा देता हूँ।

 

 

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