माँ पर दो बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़लें। माँ पर दो बहुत ही शानदार ग़ज़लें। माँ पर ग़ज़ल। माँ की ग़ज़ल

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माँ पर ग़ज़लमाँ पर दो बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़लें जो आपकी आँखों मे नमीं ला देगी। मदर्स डे पर माँ को समर्पित मेरी ये दो ग़ज़लें माँ की विराट शख्सियत को दर्शाने में कितनी सक्षम हैं यह तो आपकी प्रतिक्रिया से ही पता चलेगा। आशा करता हूँ कि यह आर्टीकल माँ पर ग़ज़ल आपको पसंद आएगा। 

माँ पर ग़ज़ल – दुआयें

दुआयें माँ की, कभी कम नहीं होतीं
माँ तो माँ है, ख़ुदा से कम नहीं होती।

माँ कल ख़ुदा से, ज़बाबतलबी करती रही
मुश्किलें क्यों, बेटे की कम नही होतीं। 

एक दिन मेरा बेटा भी, सिकन्दर बनेगा
माँ की उम्मीदें, कभी कम नहीं होतीं।

मेरा पहला गुनाह, और माँ का वो थप्पड़
सबक देने में, माँ को शरम नहीं होती।

मुझसे बेहतर जानती है, जीने का सलीका
माँ की ख़ुश मिज़ाजी, कम नही होती।

मेरा दावा है कि, दुनिया मे कोई भी चीज़
माँ के दिल से ज्यादा, नरम नही होती।

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Maa par Gazal
-Maa chup rah jaati hai-

Duayen maa ki,
kabhi kam nahin hoti
maa to maa hai,
khuda se kam nahin hoti.

kal khuda se,
jababtalbi karti rahi
bete ki mushkilen,
kyon kam nahi hoti.

ek din mera beta bhi,
sikandar banega
maa kj ummeeden,
kabh i kam nahi hoti.

mera pahla gunaah,
aur maa ka vo thappad
sabak dene mein,
maa ko sharam nahi hoti.

mujhse behtar jaanati hai,
jeene ka saleeka
maa k i khush mizaajee,
kam nahin hoti.

mera daawa hai ki,
duniya mein koi bhi cheez
maa ke dil se jyada,
naram nahi hoti.

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माँ पर ग़ज़ल
-माँ चुप रह जाती है-

मेरे हालात को मुझसे, पहले समझ जाती है
माँ अब कुछ नहीं कहती, चुप रह जाती है।

तब भी मुस्कराती थी, अब भी मुस्कराती है
माँ चुप रहकर भी, बहुत कुछ कह जाती है।

एक वक्त था जब सब, माँ ही तय करती थी
अब क्या तय करना है, तय नहीं कर पाती है।

तसल्लियों की खूंटी पर, टांग देती है ज़रूरतें
मेरी मुश्किलात माँ, पहले ही समझ जाती है।

जिसे दुश्वारियों के, तूफ़ान भी ना हिला पाये हों
वो अपने बच्चे के, दो आँसुओं में बह जाती है।

मेरी माँ कभी मेरी, जेबें खाली नहीं छोड़ती
पहले पैसे भरती थी, अब दुआयें भर जाती है।

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Maa par Gazal
-Maa chup rah jaati hai-
-‎
mere haalaat ko mujhse,
pahle samajh jaati hai
maa ab kuchh nahin kahati hai,
chup rah jaatee hai.

tab bhee muskaraatee thi,
ab bhee muskaraatee hai
maa chup rahkar bhee,
bahut kuchh kah jaati hai.

ek samay tha jab sab,
maa hee tay karti thi
ab kya tay karna hai,
tay nahi kar paatee hai.

tasalliyon ki khoontiyin par,
taang deti hai zarooraton ko
mere mushkilaat maa,
pahale hi samajh jaatee hai.

jise dushbariyon ke,
toofaan bhi na hila paaye hon
Vo apane bachche ke,
do aansuon mein bah jaati hai

meri maa kabhi meri,
jeben khaali nahi chhodti
pahle paise bharti thi,
ab duayen bhar jaati hai.

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