नोट बंदी के विरुद्ध भारत बंद पर कविता। Not bandi ke viruddh Bharat band par Kavita
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बेईमानों ने तुरही फूकीं, मिल करके हुड़ दंग करो
ज़हर फ़िज़ाओं में घुलवा दो, आओ भारत बंद करो
गीदड़ चंद इकठ्ठे होकर, हुआ हुआ चिल्लाते हैं
शेर बड़ा भारी है इसका, हुक्का पानी बंद करो।
जनता खूब समझती है ये, किस प्रकार की बेचैनी
नोटों की माला टूटी है, पीर घाव की है पैनी
हाथी सूंड तोड़कर भागा, महल कंगूरे टूट गए
कुनबे वाली राजनीति के, चक्के पीछे छूट गये
बौराई इक नेत्री दौड़ी, बलवा मेरे संग करो
शेर बड़ा भारी है इसका, हुक्का पानी बंद करो।
घोषित पागल कंसुर स्वर में, खांस खांस कर गाता है
आम आम के गीत सुनाकर, इटली के फल खाता है
पप्पू को साफा पहनाकर, घोड़े पर बिठवाया है
हर्र बहेरों ने मिलकर के, दूल्हा एक सजाया है
ये सब हैं मक्कार बराती, तबियत इनकी चंग करो
शेर बड़ा भारी है इसका, हुक्का पानी बंद करो।
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कालाधन कालाधन लाओ, कान फाड़ चिल्लाते थे
मोदी जी की नेक नीयत पर, उंगली रोज उठाते थे
लाखों अरबों डूब रहे तो, आगबबूला होते हो
वो है खूब मजे में किस, जनता का रोना रोते हो
मुश्किल से तो देश खुला है, तुम कहते हो बंद करो
शेर बड़ा भारी है इसका, हुक्का पानी बंद करो।
इस भ्रम में मत रहना जैसा, होता आया फिर होगा
आओ बंद कराने आओ, लठ्ठों से स्वागत होगा
खुशफ़हमी में मत रहना कि, ज़हर कान में भर देंगे
ओछी राजनीती की सारी, बंद दुकानें कर देंगे
बाज़ आओ ऐ खुदगरजो, यह ज़हरखुरानी बंद करो
शेर बड़ा भारी है इसका, हुक्का पानी बंद करो।
bahut hi sundar kavitayen hain
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सुषमा जी । निश्चित रूप से आप जैसे अप्रतिम बोध रखने वाले साहित्य सुधिजनों की सकारात्मक प्रतिक्रिया हम जैसे नवोदित रचनाकारों का मनोबल बढाती है।
आपका बहुत-बहुत आभार । उड़ती बात आपकी कृतज्ञ है ।
बहुत सुंदर कटाक्ष
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राजपूत साहेब, आप की अमूल्य सराहना से ऊर्जा मिली।
कृपया ऐसे ही मनोबल बढ़ाते रहें। उड़ती बात से जुड़े रहें और अपनी बेशकीमती प्रतिक्रिया देते रहें।
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कृतज्ञ हूँ। बहुत बहुत आभार आपका।