दान पर भाषण – Speech on donation, Quotes on Donation, दान पर वक्तव्य

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दान पर भाषण – अक्सर ही सामाजिक सरोकार की संस्थाओं के आयोजनों में परहित की योजनाओं पर गोष्ठियाँ एवम परिचर्चा होती रहती है। सामाजिक विसंगतियों को दूर करने के लिये नवाचार करने की पहल के लिये विमर्श होता रहता है। किसी भी सामाजिक सुधार की योजना के कार्यान्वयन के लिये धन राशि की आवश्यकता होती है जिसे समाज के समर्थ लोगों के द्वारा दान donation द्वारा जुटाया जाता है अथवा समाज के सभी सदस्यों द्वारा अंशदान करके जुटाया जाता है। ऐसी किसी परिचर्चा के लिये मैंने यह आर्टिकल दान पर भाषण प्रस्तुत किया है। आशा है कि आपको दान पर लिखा हुआ भाषण पसन्द आयेगा।

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दान पर भाषण

बहुत ख़ुशी हो रही है कि आज का दिन एक सार्थक चिंतन के नाम किया गया है। निश्चित रूप से आज हमारा समाज एक जागरूक समाज के रूप में प्रतिसादित हो रहा है। हमारी जागृति का ही उदाहरण है जो हम आज बेटियों को उच्च शिक्षा दिला रहे हैं, बेटियों को बेटों जैसा दर्जा दे रहे हैं। वसीयत में बेटियों को बेटों के समान बराबर की भागीदारी दे रहें हैं।

हमने लिंगानुपात का दंश झेल रहे समाज में विवाह के लिये नवयुवक युवती परिचय सम्मेलन का आयोजन आरंभ किया है जिसके सुखद परिणाम आ रहे हैं। आज पूरे देश में लगभग सभी समाजों ने शुरुआती हिचकिचाहट के बाद परिचय सम्मेलन को अपनाया है और एक अभिशाप बनने जा रही स्थिति को वरदान में तब्दील कर दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि किसी विसंगति या अव्यवस्था को दूर करने के लिये किसी ना किसी को प्रयास शुरू करने होंगें। अन्तोगत्वा उसके प्रतिसाद से उत्साहित हो कर अन्य समाजें उसे खुले दिल से अपनाने लगती हैं।

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इतिहास गवाह है कि हमारे समाज ने सदा से ही इस देश एवम समाज के उत्थान में महती भूमिका निभाई है। ऐसा इसलिये है कि हमारी समाज एक प्रबुद्ध एवम संवेदनशील समाज मानी जाती है। आज यहाँ पधारे विद्वान वक्ताओं ने अलग अलग सामाजिक मुद्दों पर अपना वक्तव्य दिया है जो कि हमारी सवेंदनशीलता का परिचायक है। मैं ऐसे ही अछूते विषय पर अपना चिंतन प्रस्तुत कर रहा हूँ, और वो विषय है दान। मैं चार पंक्तियों के माध्यम से आपको अपने विषय तक लेकर जाना चाहता हूँ कि..

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लिया बहुत है आओ मिलकर, दुनिया को दे जायें हम
दान किया है बहुत चलो कुछ, अंशदान कर जायें हम
बुनियादी बातों की चिंता, कर के युग निर्माण करें
ऋण बसुधा का इस समाज का, मिलकर आज चुकायें हम।

जी हाँ विषय समाज और देशहित का ही है। गर्व की बात है कि सदा से ही हमारी समाज दान करने में अग्रणीय रही है। लेकिन थोड़ा सा क्षोभ है कि हमारी दान की राशियाँ केवल धार्मिक अनुष्ठानों और धार्मिक आयतनों तक सीमित रह गईं हैं। हम परमार्थ हेतु दान करते हैं लोकार्थ हेतु नहीं। जिस धरती पर हमने जन्म लिया, जिस समाज ने हमें पहचान दी उस समाज उस धरती का ऋण चुकाने के लिये हम कोई प्रयास नहीं करते।

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