महाराणा प्रताप पर कविता इन हिंदी – मेवाड़ का वीर कविता, महाराणा प्रताप पर कविता, महाराणा प्रताप जयंती पर कविता, Maharana pratap par kavita
महाराणा प्रताप पर कविता इन हिंदी – उड़ती बात के सभी सुधि पाठकों को अमित मौलिक का सादर अभिवादन। मित्रो, अद्वितीय शौर्य और बेमिसाल साहस के स्तंभ महाराणा प्रताप की सच्ची कहानियाँ भारतीयों को आकर्षित करती रहीं हैं। आज का आर्टीकल महाराणा प्रताप पर कविता इन हिंदी के द्वारा मैंने उनके अतुलित शौर्य को अपनी छोटी कलम से वर्णित करने का प्रयास किया है। आशा करता हूँ कि यह आर्टीकल महाराणा प्रताप पर कविता इन हिंदी आपको पसंद आयेगा।
महाराणा प्रताप पर कविता इन हिंदी
जिस महामहिम की महिमा से, धरती नभ महिमा मंडित है
जिस आन बान की गरिमा का, यशगान अभी तक गुंजित है।
जिनके रौरव के गौरव का, माथे पर तिलक लगाती थी
जिस वीर लाल के साहस पर, माता जीवट मुस्काती थी।
मुगलों के दुष्कर विप्लव से, लड़ सकने वाले हंता थे
कुंभलगढ़ क्या भारत भर के, जो अतिंम भाग्य नियंता थे।
वो एकमात्र चिर आशा थे, भारत भर के श्रीमंतों के
प्रतिउत्तर खुलकर दे सकते, जो रक्त सने षड्यंत्रों के।
सिंहों का गरम लहू उस दिन, तेज़ाबी होकर धधक उठा
गोगुन्दा में जब शूरवीर, राणा बन सिहांसन बैठा।
चौड़ी छाती उन्नत ललाट, भाले से सज्जित रहते थे
उस महाप्रतापी योद्धा को, महाराणा प्रताप कहते थे।
ये भी पढें – वीर कुंवर सिंह पर हाहाकारी कविता
ये भी पढ़ें – एक तेज़ाबी देशभक्ति कविता
ये भी पढ़ें- देशभक्ति पर 3 छोटी कवितायें
भौंहें कमान हो जायें तो, भय की सिहरन उठ जाती थी
भीतर घाती जयचंदों की, साँसें तक रुक-रुक जातीं थीं।
गर हुआ सामना राणा से, है निश्चित मृत्यु भाँप गये
हुँकार भरा सुन सिंहनाद, ऊपर से नीचें काँप गये।
अकबर का यश क्षय कर डाला, सब तुर्क यवन घबराये थे
कितनों ने मुँह की खाई थी, कितनों ने प्राण गंवाये थे।
तलवार अगर उठ जाये तो, अंबार लगाते शीशों का
सब छिन्न-भिन्न कर देते थे, मद निर्मम सत्ताधीशों का।
भारत को जिसनें जीत लिया, वह शहंशाह भी डरता था
उससे कैसे जीतें रण में, जो मर जाने को लड़ता था।
जिससे भयभीत मुगल होकर, सहमे-सहमे से रहते थे
उस महाप्रतापी योद्धा को, महाराणा प्रताप कहते थे।
हल्दीघाटी को याद करो, इतिहास यशोगाथा गाये
गोगन्दा आरावली अभी, तक आर्तनाद से थर्राये।
बाइस हज़ार की सेना ने, अस्सी हजार ललकारे थे
राणा ने खोये आठ सहस, चालिस हज़ार रिपु मारे थे।
यमराज स्वयं बन जाते जब, घोड़े चेतक पर चढ़ते थे
क्षत विक्षत दुश्मन हो जाते, नर मुंड हवा में उड़ते थे।
यूँ चपल बेग से लड़ते थे, विद्युत तड़ तड़ गिर ज्यों जाये
जब जब भाला रण में चलता, कलरव मर्मान्तक हो जाये।
कितने महानतम योद्धा थे, पाकर मृत्यु के समाचार
नम हुई आँख उस अकबर की, जो था प्राणों का तलबगार।
जिस शूरवीर की शत्रु तक, अंतर से इज़्ज़त करते थे
उस महाप्रतापी योद्धा को, महाराणा प्रताप कहते थे।
आपको यह आर्टीकल महाराणा प्रताप पर कविता इन हिंदी कैसा लगा कमेंट करके ज़रूर बताइयेगा। धन्यवाद
Amit Ji mujhe apki rachna Bahut achchi lagi, aap aise hi mehnat karte rahe bhagwan se yahi kamna karta hu
Jay shree RAM
बहुत बहुत धन्यवाद मयंक जी। दिल से आभार आपकी शुभेक्षायें के लिए।
Jay hind appko sallut bhai for your most femous veer ras poem appko tahe dil se dhanywad bhagwan appko aur aise poem likhne ke gyaan sakti pradan karte rahen
आदरणीय वर्मा जी, आपके आशीर्वचनों से उत्साहबर्धन हुआ। आपका ह्र्दयतल से धन्यवाद आभार। जय हिंद
Bhohot achhi kavita likhi h aapne uncle 👌