पाकिस्तान के विरोध में कविता – निपट जायेगा पाकिस्तान । कवि अमित मौलिक

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पाकिस्तान के विरोध में कविता – प्रिय पाठको, मेरे कई प्रशंसकों के मेल मुझे मिल रहे थे कि मैं पाकिस्तान के विरोध में कविता  लिखूँ। मैंने इस आर्टीकल पाकिस्तान के विरोध में कविता  में 2 कविताओं के माध्यम से पाकिस्तान के प्रति भारतीय जन साधारण के आक्रोश को सरल शब्दों में आवाज़ देने की कोशिश की है। पाकिस्तान के विरोध में कविता लिखने का मेरा प्रयास कितना सफल है यह तो आप सब ही तय करेंगें। तो आइये पढ़ते हैं यह आर्टीकल पाकिस्तान के विरोध में कविता

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पाकिस्तान के विरोध में कविता

निपट जायेगा पाकिस्तान

सोच समझ ले एक बार तूँ, क्या होगा अंज़ाम
निपट जायेगा पाकिस्तान, निपट जायेगा पाकिस्तान
ख़ैर नहीं इस बार मिटेगा, तेरा नाम – ओ – निशान
निपट जायेगा पाकिस्तान, निपट जायेगा पाकिस्तान।

सियाचीन से कारगिल से, जूते मार भगाया
पैंसठ और इकहत्तर में भी, मुर्गा तुम्हें बनाया
गिड़गिड़ाये थे माफ़ करो, अब फिर ना ऐसा होगा
अल्ला की सौगन्ध खाई थी, की थी तौबा-तौबा
सुअरों वाली जात देखकर, दुनियां है हैरान
निपट जायेगा पाकिस्तान, निपट जायेगा पाकिस्तान।

भीख माँगकर रहने वाले, इस तरहा न लड़ते
कुत्ते झुंडों में भी हों, शेरों से नहीं झगड़ते
बाज आओ इस बार तुम्हें न, हम फिर माफ़ करेंगें
स्वच्छ स्वस्थ अभियान चलाकर, कचरा साफ़ करेंगें
अब की बार बना देंगें हम, घर-घर क़ब्रिस्तान
निपट जायेगा पाकिस्तान, निपट जायेगा पाकिस्तान।

अरे ज़ाहिलो सात गुना, तुमसे तादात हमारी
तूँ पिद्दी क्या तेरा शोरबा, क्या औक़ात तुम्हारी
सात फीट के बाप को बौना, बेटा तौले जाता
नाज़ायज़ बापों की शह में, बड़-बड़ बोले जाता
ओ गँवार निर्लज्ज खींच लेंगें हम, तेरी ज़ुबान
निपट जायेगा पाकिस्तान, निपट जायेगा पाकिस्तान।

सोच समझ ले एक बार तूँ, क्या होगा अंज़ाम
निपट जायेगा पाकिस्तान, निपट जायेगा पाकिस्तान
ख़ैर नहीं इस बार मिटेगा, तेरा नाम – ओ – निशान
निपट जायेगा पाकिस्तान, निपट जायेगा पाकिस्तान।

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 पाकिस्तान के विरोध में कविता

मिटा देंगें ऐ पाकिस्तान

मेरी बात को हल्के में ना, लेना ऐ नादान
जब चाहेंगें तुझे मिटा, देंगें ऐ पाकिस्तान।

बेवकूफ़ हो होड़ ये कैसी, इससे क्या है मिलना
मुन्ना राजा दौड़ ये कैसी, बाप से कैसी तुलना
किसी दीन का नहीं रहेगा, कहना मेरा मान
जब चाहेंगें तुझे मिटा देंगें, ऐ पाकिस्तान।

प्याज-नमक से काम चला, क्या बिरयानी का रोना
बोटी के चक्कर में रोटी, से तूँ हाँथ ना धोना
नंगी भूखी बैठी जनता, उसका कर कुछ ध्यान
जब चाहेंगें तुझे मिटा, देंगें ऐ पाकिस्तान।

भूल गये दो बार उतारा, भूत तुम्हारे सर से
फटी-फटी थी छोड़-छोड़ कर, भागे अपने घर से
नाक घिसी थी-पैर पड़े थे, तब बक्शी थी जान
जब चाहेंगें तुझे मिटा, देंगें ऐ पाकिस्तान।

कितनी इज़्ज़त और उतारें, बेशर्मी पर लानत
कितनी बार पटक कर मारा, फिर आई क्या शामत
हद में रह इस बार मुकर्रर, होगा कब्रिस्तान
जब चाहेंगें तुझे मिटा देंगें, ऐ पाकिस्तान।

कवि अमित मौलिक

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