बुलेट ट्रैन की उपयोगिता पर एक आलोचनात्मक कविता। जापानी बुलेट ट्रैन प्रोजेक्ट पर कविता। jaapaanee bullet train project par kavita
भारत में चलेगी जापानी बुलेट ट्रैन। अभी अभी जापान के माननीय प्रधानमंत्री जी भारत के दौरे पर पधारे थे। इस राजनैतिक दौरे की महत्वपूर्ण उपलब्धि भारत मे बुलेट ट्रैन चलाने के प्रोजेक्ट पर अनुबन्ध और जापान द्वारा एक भारी राशि बहुत ही कम प्रतिशत पर कर्जे के रूप में उपलब्ध कराना रही।
निश्चित रूप से हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी का यह एक महत्वाकांक्षी सपना है। लेकिन तार्किक दृष्टि से चिंतन किया जाये तो क्या वर्तमान हालात में भारत को बुलेट ट्रैन जैसे भारी भरकम प्रोजेक्ट की आवश्यकता है? जबकि हमारे देश मे इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण आधारभूत समस्याओं और सुविधाओं पर तीव्र गति से कार्य किया जाना आवश्यक है।
मैं माननीय प्रधानमंत्री जी का प्रशंसक और समर्थक हूँ लेकिन देश के ज़िम्मेदार नागरिक और लेखक कवि होने के नाते मैं अपनी असहमति इस प्रोजेक्ट पर अपनी इस कविता के माध्यम से व्यक्त करता हूँ-
चलेगी अब जापानी रेल, चलेगी अब जापानी रेल
बुलेट ट्रेन आयेगी होगा, चुटकी में सब खेल।
सठियाई स्पीड को पहले, सौ तक तो पहुंचा लो
इतना ब्रिस्तृत रेल तंत्र है, उसको स्वस्थ बना लो।
उलट पुलट जातीं ट्रेनों की, दुर्घटना को रोको
आसमान ना तको बनाओ, स्वर्ग इसी धरती को।
सुपरफास्ट तो करलो पहले, पैसेंजर और रेल
चलेगी अब जापानी रेल, चलेगी अब जापानी रेल।
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हस्पताल में बीमारों की, इतनी संख्या क्यों है
गाँव गाँव में स्वास्थ्य व्यवस्था, चौपट ज्यों की त्यों है।
जान बड़ी या समय बड़ा है, ट्रैन चलाने वालो
कारोबारी हुई चिकित्सा, पहले इसे संभालो।
करके देखो फिर देखो, वोटों की ठेलम ठेल
चलेगी अब जापानी रेल, चलेगी अब जापानी रेल।
डेढ़ पसेरी से ज्यादा, बच्चों का बस्ता भारी
फ़ीस दाम मनमाने रखते, शिक्षा के व्यापारी।
सब की यही तमन्ना उनके, बच्चे पढ़ लिख जायें
सरकारी स्कूल हैं खस्ता, किसको कहें सुनायें।
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सस्ती उत्तम शिक्षा दे दो, बाद में झटपट रेल।
चलेगी अब जापानी रेल, चलेगी अब जापानी रेल।
बड़े बड़े दावों की हमने, फूंक सरकती देखी
खुशफ़हमी में ताज तख़्त, सरकार पलटतीं देखीं।
बहुत काम बाकी है पहले, सड़कें तो बनवालो
ज़हर खुरानी खानपान में, जाती जान बचा लो।
अहम काम करने को ढेरों, खेलो न यूँ खेल।
चलेगी अब जापानी रेल, चलेगी अब जापानी रेल।
पढ़े लिखे सब हुये निठल्ले, रोजगार दिलवाओ
जी एस टी का लाभ दिलाओ, सस्ता सब करवाओ।
नोटबन्द करवाये लेकिन, काला धन ना आया
देश घिरा मंदी में बेहद, नुस्खा काम ना आया।
मौलिक उपक्रम कर लो वरना, हो जायेगी झेल।
चलेगी अब जापानी रेल, चलेगी अब जापानी रेल।
सामयिक मुद्दों पर आपका प्रखर चिंतन प्रभावी है। आम जान की अभिव्यक्ति है आपकी रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
आप जैसे प्रखर रचनाकार का उड़ती बात पर बहुत बहुत स्वागत है। ऐसे ही मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन करते रहें मान्यवर। कृतज्ञता प्रेषित करता हूँ।
वाह्ह्ह…वाह्ह्ह….क्या जोरदार रचना है वाह्ह्…हमको बहुत पसंद आयी।सटीक, संतुलित सत्य का दर्पण दिखलाती बहुत बहुत अच्छी रचना।पढ़ने में आनंद आया।
आपकी शैली की विशेषता है अमित जी कि एक प्रवाह मिलता है पाठक को।जो रचना में रूचि जागृत करता है।
आपने भूमिका भी बहुत अच्छी लिखी है।
सराहनीय रचना आपकी।
बहुत बहुत आभार धन्यवाद आपका श्वेता जी। आपका रचनात्मक दृष्टिपात मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देता है। सादर
बहुत खूब …
पर एक में सुधार न हो तो दूसे की तरफ देखना नहीं चाहिए मैं ऐसा नहीं समझता …
चिंतन हर बात पे जरूरी है … सुधार की कोशिशें तमान जरूरी हैं पर रुक जाना … ये जरूरी तो नहीं …
जी मैं आपके नज़रिये की कद्र करता हूँ। कोशिशों में तेजी हो इसी कामना जे साथ आपका बहुत बहुत आभार अतुल्य धन्यवाद माननीय। ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें।