झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता : Kavita Jhanshi ki Raani lakshmi bai, jhansi ki rani lakshmi bai par kavita in hindi
हुई आर पार की बात विकट उत्पात,
तो रानी क्रोध में आईं
निकली चम चम तलवार थे निर्मम वार,
युद्ध में स्वयँ भवानी आईं
इक वार में छह छह मरे भूमि पर गिरे,
ना पीछे मुड़कर देखा
रण भूमि में हुआ विध्वंश काल का दंश,
प्रलय का तांडव अरि ने देखा
झलकारी सखी विकट्ट गिरे कट कट्ट,
दामिनी जैसी कौंधन
सुन्दर मुन्दर का जोड़ देख रण छोड़,
भाग जाता था दुश्मन फ़ौरन
दुर्गा सेना की मार चले तलवार,
वार कर बढ़ती जाए
भालों से बिंध कर धड़ कपें थर थर,
वीर सखियों से जो भिड़ जाये
थी काशी बाई सख्त, थे खुदा बक्श,
ना लाला भाउ का सानी
सेनापति गौस का ताव जवाहर राव,
अमर सब रानी के सेनानी
फिर हुआ रक्त का पात मगर अनुपात,
था गड़बड़, सैन्य संतुलन
बुद्धी से लेकर काम छोड़ संग्राम,
समर को छोड़ के करो पलायन
फिर किया कालपी कूच वहाँ के भूप,
ने आश्रय दिया था खुलकर
थे अंग्रेजो से खिन्न नहीं थे भिन्न,
लड़ेंगे हम भी तुमसे मिलकर
इतिहास में कई मिसाल हुए बेहाल,
प्रशासक जयचंदों से
अपनों ने सेंध लगाई खबर भिजवाई,
छिपी हैं रानी जी परसों से
ह्यूरोज चला आया वो चिल्लाया,
घेर लो बच ना पायें
जो मिलें राज रजवाड़ उन्हें दो मार,
पकड़ कर, आज भाग ना जायें
सिर आया फिर संग्राम राम हे राम,
सैन्य से सैन्य भिड़ गईं
थी उमगी रुधिर फुहार चलीं तलवार,
क्रुद्ध हो रानी रण में लड़ गईं
फिर हार शीश मंडराई विवशता आई,
सभी पीछे हट जाओ
आया है इक सन्देश कालपी देश,
छोड़ गोपालपुरा को आओ
फिर अवध से बिरजिस क़द्र महल हज़रत,
थीं बेगम जीनत आईं
अरु चतुर अजीमुल खान सभी दीवान,
बहादुर शाह सी हस्ती आई
राजा श्री मर्दन सिंह वानपुर तुंग,
और थे तात्या टोपे
नाना श्री धुंधूपंत कई और कंत,
मंत्रणा को आकर के बैठे
गोपाल पुरा में रात हुई थी बात,
कि मिलकर करो चढ़ाई
इन गोरों की क्या बात है क्या औकात,
अगर सब मिलकर करें लड़ाई
रानी का बढ़ा महत्व मिला नेतृत्व,
सयुंक्त सब हुए सेनानी
रानी को करो सुपुर्द ग्वालियर दुर्ग
सभी ने पक्की मन में ठानी
फिर रातों रात प्रयाण काँप गए प्राण,
सिंधिया नृप थर्राये
अंग्रेजों के थे मित्र भीरु था चित्त,
सैन्य में बीज द्रोह के आये
तात्या ने रची कथा ये कैसी प्रथा,
ये कैसी है नादानी
निज गौरव सरे बाज़ार बेच कर हार,
मान बैठे तुम सब सेनानी
था अंतर्मन विद्रोह उठा आक्रोश
ग्वालियर की सेना में
आसान हो गई जीत कि सत्ताधीश,
आगरा भागे जान बचाने
थी शौर्य ध्वजा फहराई मुदित नृपराई,
यहाँ से बिगुल बजेगा
गोरों की शामत आई क्रुद्ध तरुणाई,
यहाँ से देश में अलख जगेगा
पर दुष्कर विधी विधान कोई ना जान
सका, गोरों की चालें
पहुंचे वो दुष्ट सुजान आगरा थान,
सिंधिया राव का दांव चलाने
तुम स्वयं युद्ध में जाओ हमें लड़वाओ,
द्वन्द में जंग हुई तो
हो हाथी पर असवार लड़ो सरकार,
तुम्हारा राज मिलेगा तुमको
असमंजस का भ्रम जाल बुरा था हाल,
सैन्य सेनापति अकुलाए
कैसे कर दें हम वार उठे तलवार,
हमारे राजा लड़ने आये
अपने ही टूट गए लो रूठ गए,
बसंती सपने सारे
है कौन हमारे पक्ष है कौन बिपक्ष,
घात प्रतिघात की शंका मारे
हालात थे विकट कुरूप भवानी रूप
थी रानी तनिक डरी ना
हम जान लड़ाएंगे दिखाएंगे,
नियति से होगा बढ़कर कुछ ना
थी भगवा पगड़ी लेस सैन्य गणवेश,
चटक चुन्नट पैजामी
रखतीं थीं आठ कटार वो दो तलवार,
ढाल के बिना लड़े मर्दानी
आँखे थीं रक्तिम लाल दहकता भाल,
सजी तलवार कटारी
होंठो पर थी हुंकार विक्रमा नार,
अश्व पर दुर्गा चढ़ीं सवारी
तिनकों से उड़ते मुंड झुण्ड के झुण्ड,
थीं निर्मम रानी रण में
तलवार के ऐसे दांव घाव ही घाव,
कि सौ सौ कट जाते थे क्षण में
क्रोधित थे सिंह प्रचण्ड मृत्यु का दंड,
बांटते वीर तात्या
दीवान जवाहर रुष्ट फिरंगी दुष्ट,
मरे अनगिनत, काल मंडराया
वीरों में वीर सवाई थी काशी बाई,
चपल मोती का लड़ना
ऐसे ढेरों रण वीर समर के तीर,
बाँकुरों का जौहर क्या कहना
दुश्मन थे आठ गुने इधर थे गिने,
चुने, चकचूर चढ़ाई
वो लड़ी मान की जंग फिरंगी दंग,
थी उनकी जान कंठ में आई
प्रारब्ध का कैसा खेल थी रेलम पेल,
ठौर को तरसे रानी
अपने ही देश में आज मौत का नाच,
करें मुट्ठी भर क्रूर ब्रितानी
उद्यत थे वीर निशंक ना भय था रंच,
मगर जो अलख जगाई
यह बने लपट बिकराल काल का गाल,
हृदय में चिंता यही समाई
आँखों आँखों संकेत छोड़ कर खेत,
विलग हो जाओ बांकुरो
बैरी हावी फ़िलहाल कूच तत्काल,
चार दल बना चतुर्दिश जाओ
घोड़े को दे दी एड़ मेड़ ही मेड़,
लक्ष्य चम्बल की घाटी
पहने मर्दाने वेश सखी क़ुछ शेष,
और कुछ चंद साथ सेना थी
है खबर नहीं अफवाह अगर हो चाह,
तो जाकर पकड़ मँगाओ
जग जाहिर कर दी बात किसी ने घात,
राह इस गई है रानी जाओ
दुठ बैरी पीछे पड़े थे ज़िद पर अड़े,
ना अवसर जाने पाये
चहुँ ओर दौड़ते अश्व भयावह दृश्य,
नियति के आगे कोन उपाये
था नया नवेला अश्व देखकर दृश्य,
सामने आया नाला
घबड़ाकर हुआ खड़ा वो ज़िद पर अड़ा,
नहीं मैं आंगे जाने वाला
पीछे थी टुकड़ी चार वो एक हज़ार,
रास्ता अन्य कोई ना
हम दर्जन पांच हैं वीर वक्त गंभीर,
आह तकदीरों का क्या कहना
फिर चमक उठी तलवार अधर फुंकार
क्रुद्ध हो भृकुटि तानी
सर कट कट अवनि तल गिरे पल पल,
कंपकपी उठी रूह थर्रान
घेरा होता है तंग नहीं क़ुछ रंज,
मुझे होगी संतुष्टि
गर निकल जायें ये प्राण मृत्यु उपरान्त
भी शत्रु छू ना पाये मिट्टी
अनगिनत लगे थे घाव हुआ घेराव
पीठ पीछे से मारे
गिरते गिरते तलवार कर गई वार
शीश छह शत्रु को पड़े गवाने
वो गिरीं समर की भूमि श्वांस थी क्षीण,
मृत्यु ने ली अंगड़ाई
अपर्ण है तुझको माँ ये मस्तक जां,
क्षमा करना मैं लड़ ना पाई
बहुरूप था मर्दाना नहीं जाना,
कौन है लक्ष्मी बाई
हालात में मरणासन्न छोड़कर सैन्य
बढे, आंगे, थी और लड़ाई
स्थल था कोट सराय पास में पाय,
संत गंगाधर आश्रम
निष्कंटक हो जन चार सभी संस्कार,
विधि से पूर्ण किये सब उपक्रम
अपराजित तेइस वसंत नार दिग्वंत,
दशों दिशि भेरी बजाई
पावक थी कुंड प्रचंड उमंड उतंग
दिव्यता दिव्य में गई समाई
सौ सौ जननी मायें सौ ललनाएँ,
जन्म देतीं, होतीं हैं
तुम जैसी अजित शिवा शौर्य चपला
युगों में एक प्रकट होती है
तुमसी बहु विज्ञ कलत्र वीर अन्यत्र
अन्य ना होगी नारी
भारत माँ की संतान करेगी मान,
रहेगी युग युग ऋणी तुम्हारी
जब निज़ता का हो प्रश्न तो शर्त नगण्य,
सहेंगे भारतवासी
हो मातृभूमि की बात कोई प्रतिघात,
सहन ना करना सीख सिखा दी
उपकृत हम करें नमन विहल जन जन
सदा झाँसी की रानी
तेरे इस मौलिक ओज शौर्य अरु सोच
की गाते रहेंगे अमर कहानी
प्रिय पाठको, यह आर्टिकल झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता महज एक कविता मात्र नहीं है, एक कवि के दिल से निकली सुम्नांजली है। आपकी बहुुुमुल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में- कवि अमित जैन ‘मौलिक’