एक कटेगा बीस काटकर, दुश्मन के सिर लायेंगे हमें जिताओ है वादा हम, कड़ा सबक सिखलायेंगे। लेकिन आज नदारद सारे, तेवर भगतसिंह वाले ये कैसी तासीर पदों की, स्वाभिमान को जो मारे। निंदा निंदा और भर्त्सना, सुना सुना कर छका दिये बड़ बोले कुछ नेताओं ने, कान हमारे पका दिये। ये भी पढ़ें-
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता – तो आपने पहले भी पढ़ी होगी, कई रचनाकारों की कवितायें पढ़ीं होंगी लेकिन यह कविता झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता महज़ एक कविता नहीं हैं उनका पूरा जीवन वृतांत है, उनकी लौहमर्षक महागाथा है। अगर आप यह झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता पूरी पढ़ लेंगें तो मेरा दावा है कि आपकी
तुमने कहा बहकना ठीक नहीँ तो फ़िर यूँ चहकना भी ठीक नहीँ, तुम पात्र ही नहीँ रस पीने के कुचल क्यों नहीँ देते अरमान सब सीने के देखो, सतत बनी हुई एकरसता रुग्ण कर देती है बनावटी सात्विकता अवसाद भर देती है गुंजाइश सदा ही होती है नये पंखों की नये अंकुर की लेकिन पहले तय करो कि
मैंने कब कहा तुम मेहनत से मिले हो तुम तो अप्रतिम गुलाब हो ह्रदय की बंजर भूमि पर नैमत से खिले हो इसमें बेईमानी क्यों लगती है तुम्हें गलत बयानी क्यों लगती है तुम तो सौभाग्य हो तुम शुभ संयोग हो अच्छे अच्छे ग्रहों के तुम मिलन का योग हो मेरे निकट आये तुम सचमुच बड़े