March 1, 2016
कविता-कैक्टस/kavita-Kaiktas
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कभी कभी चिंतायें कैकटस हो जाती है नुकीली चुभतीं सी कष्टप्रद पीड़ादायक संताप के रंग में रंगी हुईं स्वतः ही पल्लवित होतीं जाती हैं प्रथम दृष्ट्या ऐसा प्रतीत होता है जैसे, इनका जन्म अकारण ही होता है ये बिन बताये ही आती हैं कदाचित, दृष्टि परिपूर्ण नहीँ है किंचित रुप से, परिस्थितियाँ वैयक्तिक हो सकती