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पाकिस्तान सेना द्वारा दो भारतीय सैनिकों को मारने और उनके सिर काटने पर आक्रोश जताती कविता। Poem against Pakistanis army barbaric act killed two Indian soldiers and mutilated Bodies

    एक कटेगा बीस काटकर, दुश्मन के सिर लायेंगे हमें जिताओ है वादा हम, कड़ा सबक सिखलायेंगे। लेकिन आज नदारद सारे, तेवर भगतसिंह वाले ये कैसी तासीर पदों की, स्वाभिमान को जो मारे। निंदा निंदा और भर्त्सना, सुना सुना कर छका दिये बड़ बोले कुछ नेताओं ने, कान हमारे पका दिये। ये भी पढ़ें- 

कविता-कैक्टस/kavita-Kaiktas

कभी कभी चिंतायें कैकटस हो जाती है नुकीली चुभतीं सी कष्टप्रद पीड़ादायक संताप के रंग में रंगी हुईं स्वतः ही पल्लवित होतीं जाती हैं प्रथम दृष्ट्या ऐसा प्रतीत होता है जैसे, इनका जन्म अकारण ही होता है ये बिन बताये ही आती हैं कदाचित, दृष्टि परिपूर्ण नहीँ है  किंचित रुप से, परिस्थितियाँ वैयक्तिक हो सकती