दुर्जन अरिकुल जीतके जय पावे निकलंक  तुम पद पंकज मन बसै ते नर सदा निशं तुम पद पंकज धूल को जो लावे निज अंग  ते नीरोग शरीर लहि छिन में होय अनंग    देवों के भी देव दीनों के नाथ त्रिलोकपति महाप्रभु श्री आदिनाथ भगवान की महिमा अगम्य है।