हिंदी दिवस पर कविता – अपनी मातृभाषा हिंदी को समर्पित यह मेरी रचना हिंदी दिवस पर कविता सभी हिंदी प्रेमियों को भेंट है। देवोपुनीत भाषा संस्कृत के बाद अगर कोई भाषा सर्वोपरि मानी जायेगी तो वो हिंदी भाषा है। संस्कार, संस्कृति, आदर, नेह, सौहाद्र और समपर्ण सिखाने वाली भाषा अगर कोई है तो वो हिंदी ही है।
कविता-देश का हाल : यह कविता-देश का हाल भारतीय मतदाताओं की मनःस्थिति को समझने और उन्हें जागरुक करने की दृष्टि से लिखी गई है। व्यंग्यात्मक शैली की यह कविता-देश का हाल भारतीय जनमानस को अंदर तक आंदोलित करती है और कहीं ना कहीं उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी तय करती है। जातिगत, धार्मिक, वैयक्तिक, आर्थिक एवम
मावठे की ठिठुरन में ताज़ा ताज़ा जवां हुई एक नव यौवना ओस की बूँद उमंग में लहकती बहकती ठिठकती लुढ़कती संभलती अपनी आश्रय दाता जूही की एक पत्ती से लड़याती इठलाती इतराती बतियाती पूछती है- तुम्हें चिड़चिड़ाहट नहीं होती ऐसा स्थिर जीवन बिताने में कोई घबराहट नहीं होती क्या तुम्हें नहीं भाते झरनों