भगवान बुद्ध पर कविता – बुद्ध पूर्णिमा पर एक ऐसी कविता जो बतायेगी कि बुद्ध कैसे बन सकते हैं।

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भगवान बुद्ध पर कविताबौद्ध धर्म के सभी पाठकों का स्नेहिल अभिवादन। दोस्तो, कल यानि 29 April को बुद्ध पूर्णिमा है। निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के मतावलंबियों के लिए कल का दिन बहुत बड़ा दिन है। भगवान गौतम बुद्ध के भक्त सारे संसार मे फैले हुये हैं और बुद्ध पूर्णिमा का आयोजन समस्त विश्व में बड़े ही उत्साह और बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाता है। आज के इस आर्टिकल भगवान बुद्ध पर कविता में मैंने अपने बौद्ध धर्म के अनुयायी पाठकों के लिये गौतम बुद्ध पर कविता अथवा बुद्ध पूर्णिमा पर कविता का सृजन किया है। आशा करता हूँ कि भगवान बुद्ध पर कविता आपको पसंद आयेगी।

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भगवान बुद्ध पर कविता

अन्वेषक बन अन्वेष करो निज का, निज स्थित हो जाओ
समता संयम का स्रोत बनो, तुम और व्यवस्थित हो जाओ।

प्रतिमान प्रमाणित बन सकते, परिमल परिनाम बनाओ तो
अवसाद अहम अतिचारों से, तुम यदि विलग हो जाओ तो।

आवेग अमिय का अंतर में, उठ जायेगा यदि उद्दम हो
नितेश नियम से बन सकते, उर में संयम का उदगम हो।

भंगुरता से नश्वरता से, यदि ह्रदय क्षुब्ध हो जायेगा
हिय में हिलोर उठ जायेगी, मन मगन मुग्ध हो जायेगा,

सम्यक दृष्टि आ जायेगी, उर अमिय वृष्टि हो जायेगी
क्षण भर पहले सृष्टि में थे, तुममें ही सृष्टि हो जायेगी।

निलयम निर्मल निष्काम करो, यदि सरल शुद्ध हो जाओगे
इक दिन ऐसा फिर आयेगा, तुम स्वयं बुद्ध हो जाओगे।

भौतिक निधियों के मध्य यदि, मुझमें वैराग्य उमड़ सकता
सर्वत्र सुलभ सुख साधन से, मैं निर्मोही बन लड़ सकता।

संकेतों पर सब रास रंग, अनुरंजन करने बैठे थे
बल वैभव महल महत्ता सब, तत्पर थे और अनूठे थे।

भ्रम का वर्तुल भ्रम के बंधन, विभ्रम की लहर उठी मन में
आसक्ति दृष्टि में आती है, जग उलझा है गहरे भ्रम में।

पहचान गया दारुण हेतु, विप्लव में साँसें घुटतीं थीं
सम्यक्त्व परम् पद पाने को, इक लहर ह्रदय में उठती थी।

संशय फिर रंच नहीं आया, तत्क्षण कर त्याग ज़माने को
बह चला हवा जिस ओर चली, पग उठे नया पथ पाने को।

दृढ़ता समता कहती मुझसे, कर तप प्रबुद्ध हो जाओगे
इक दिन ऐसा फिर आयेगा, तुम स्वयं बुद्ध हो जाओगे।

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कल्पों से इन्हीं विकल्पों में, त्रियक अपाय में रमता है
भौतिकता और अविद्या में, यह मानव पल पल भ्रमता है।

यह पंचशील यह पारमिता, आलयविज्ञान भवाग्र करे
यह कुशल करे उपपादन में, यह उपादान से व्यग्र करे।

यह बोधिसत्व चर्या क्या है, उन्मान नहीं यूँ हो सकता
यह धर्म विनय क्या कर सकता, अनुमान नहीं यूँ हो सकता

कलरव विद्वेषण का सिमटे, जयघोष संघ का फैलाओ
धम्मं शरणम की गूँज उठे, दिवि घोष सभी करते जाओ।

विश्रांति अवस्था हो जाये, सुख सबल और चिरमय होगा
हो जाये विशुद्धि भावों में, हर जीव यहाँ निर्भय होगा।

गर स्रोतापन्न उपासक हो, तो स्वतः सिद्ध हो जाओगे
इक दिन ऐसा फिर आयेगा, तुम स्वयं बुद्ध हो जाओगे।

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