भगवान बाहुबली पर कविता। Bhagwaan bahubali Hindi Poem
यही कारण है कि चक्रवर्ती भरत उनके निर्वाण गमन के बाद उन बाहुबली की सवा पाँच सौ धनुष प्रमाण पन्ने की मूर्ति बनवाते हैं। इस इतिहास को आज असंख्य वर्ष व्यतीत हो चुके हैं।
आज से १००० वर्ष पूर्व दक्षिण प्रान्त के गंगवंशी राजा राचमल्ल के प्रधानमंत्री और सेनापति श्रावक शिरोमणि चामुण्डराय हुए हैं। कहा जाता है कि एक दिन जब उन्हें पता चला कि भगवान बाहुबली की मूर्ति के दर्शन हेतु मेरी माता ने दूध का त्याग कर रखा है, तब वे पोदनपुर के लिए प्रस्थान कर देते हैं। मार्ग में श्रवणबेलगोला में पड़ाव डालते हैं।
रात्रि में वष्माण्डिनी देवी के स्वप्न देने पर गुरुदेव आचार्य श्री नेमीचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती की आज्ञा से चामुण्डराय ५७ पुट ऊँची एक विशालकाय मूर्ति का निर्माण कराते हैं। ईसवी सन् ९८१ में इस गोम्मटेश बाहुबली मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई है।
श्रवण वेल गोला स्थित यह मूर्ति विश्व के गिने चुने आश्चर्यों में दर्ज है। यह मूर्ति एक ही बड़े पत्थर से तराशी गयी है। इस मूर्ति की महिमा का पता इस बात से ही चलता है कि ‘इस मूर्ति पर कोई पंक्षी आदि कभी नहीं बैठते हैं।’
इस बाहुबली मूर्ति की सुन्दरता अपने आप में अपूर्व ही है। दोनों चरणों के आस-पास में साँप की वामियाँ दिखाई गई है, जिनके अग्रभाग से सर्प मुख फाड़े हुए देख रहे हैं। ऊपर चलकर लतायें बड़ी ही सुन्दरता से जाँघों से निकलकर भुजाओं से लिपट रहीं हैं।
डा. ए. एन. उपाध्याय ने अपने एक लेख में लिखा था कि चामुण्डराय का घर का नाम ‘गोम्मट’ था। उनके इस नाम के कारण ही उनके द्वारा स्थापित बाहुबली मूर्ति का गोम्मटेश्वर नाम पड़ा है अर्थात् गोम्मटेश्वर का अभिप्राय है चामुण्डराय के देवता।
प्रत्येक 12 बर्षों में इस मूर्ति का महा मस्तकाभिषेक होता है जिसमे लाखों की तादात में भक्तगण सम्मिलित हो कर पूण्य लाभ लेते हैं। पिछली बार फरवरी 2006 में भगवान बाहुबली का महा मस्तकाभिषेक का आयोजन हुआ था। ठीक 12 वर्ष बाद फरवरी 2018 में यह महाआयोजन पुनः घोषित है।
श्रवण वेल गोला कर्नाटक राज्य के हासन जिले में स्थित शहर है। मैसूर से 84km दुरी पर स्थित यह शहर भगवान बाहुबली की विशाल प्रतिमा के कारण जग विख्यात है।
(साभार-http://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php?title=बाहुबली_भगवान)
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