भगवान बाहुबली पर कविता। Bhagwaan bahubali Hindi Poem
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क्यों कर मन ऐसी विरद उठी,
क्यों विजय के रथ को छोड़ चले
पर शेष क्या संशय था भगवन,
जो तप करने फिर आन खड़े
खड्गासन में चिर ध्यान किया
अन्तरतम के पट खोल प्रभु
बिन पानी भोजन चर्या के
थे अचल अकम्प अडोल प्रभु
नागों ने वामी खोद लईं
अरु वेल लतायें लिपट गईं
गर्मी बारिश सारी ऋतुएँ
निर्जन में प्रभु पर बरस गयीं
परिषह जो मन को भाया तो
इक वर्ष किया तप खड़े खड़े
पर शेष क्या संशय था भगवन,
जो तप करने फिर आन खड़े
केवल्य निकट था पर मन में
इक शल्य कहीं पर जीवित थी
यह भरत की भूमि है सारी
क्योंकर ना ली इक सम्मति थी
जब भरत ने नवधा भक्ति से
प्रभु तुमको पूजा अरज करी
मुझ से सहस्र हुए चक्रवर्ती
फिर कैसे मेरी धरा हुई
यह कैसी मन में शल्य प्रभु
यह कैसी मनः अवस्था है
क्या संसाधन मौलिक शासन,
सब स्वार्थ के निहित व्यवस्था है
तत्क्षण बिकल्प से छूट गये,
कैवल्य हुआ अरु मोक्ष गये
पर शेष क्या संशय था भगवन,
जो तप करने फिर आन खड़े
पृष्ठभूमि:-
कृतयुग की आदि में अंतिम कुलकर महाराजा नाभिराज हुए हैं। उनकी महारानी मरुदेवी की पवित्र कुक्षि से इस युग के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म हुआ है। वैदिक परम्परा में इन्हें अष्टम अवतार माना गया है। ऋषभदेव के दो रानियाँ थीं-यशस्वती और सुनन्दा।
यशस्वती के भरत, वृषभसेन आदि सौ पुत्र हुए और ब्राह्मी नाम की कन्या हुई हैं। सुनन्दा ने बाहुबली नाम के एक पुत्र को और सुंदरी नाम की कन्या को जन्म दिया।
वृषभदेव ने ब्राह्मी और सुन्दरी इन दोनों पुत्रियों को सर्वप्रथम विद्याभ्यास कराया। ऋषभदेव ने स्वयं ही इन दोनों कन्याओं को सर्व विद्याओं में पारंगत करके साक्षात् सरस्वती का अवतार बना दिया।
इसी तरह भरत, बाहुबली आदि एक सौ एक पुत्रों को भी सर्व विद्याओं में, सर्व कलाओं में, सर्व शास्त्रों और शस्त्रों में भी निष्णात बना दिया। ऋषभदेव ने प्रजा को असि, मसि आदि षट् क्रियाओं का उपदेश दिया जिससे प्रजा उन्हें युगादि पुरुष, युगस्रष्टा, विधाता, प्रजापति आदि नामों से पुकारने लगी।
किसी समय ऋषभदेव राजपाट से विरक्त हो वन को जाने लगे तब उन्होंने भरत को अयोध्या का राज्य सौंपा और बाहुबली को पोदनपुर का अधिकारी बनाया। इसी तरह अन्य निन्यानवे पुत्रों को भी अन्य देशों का राज्य देकर आप मुनिमार्ग को बतलाने के लिए निग्र्रन्थ दिगम्बर मुनि हो गये।