भगवान बाहुबली पर कविता। Bhagwaan bahubali Hindi Poem
भगवान बाहुबली पर कविता – विश्व की सबसे प्राचीन, सबसे बड़ी, सबसे उत्तंग खड्गासन मूर्ति भगवान बाहुबली की प्रतिमा जो कर्नाटक के बेल्लारी जिले मे गोमटेश्वर में स्थित है, अपने आप में एक आश्चर्य से कम नहीं है। भारत देश की शान इस जीवंत प्रतिमा के ऊपर प्रस्तुत यह आर्टीकल भगवान बाहुबली पर कविता उनके पोदनपुर के राजा बाहुबली से भगवान बाहुबली की बनने की महायात्रा का काव्यात्मक वर्णन है। आशा है कि यह रचना भगवान बाहुबली पर कविता आप सबको पसंद आयेगी।
भगवान बाहुबली पर कविता
स्वर्गों का सुख धन राज पाट,
ऐश्वर्य ना मन को भाया था
निज भ्रात लड़ें पद लिप्सा में,
ऐसा मद रास ना आया था
सब जीत गये मन हार गए,
नश्वरता से मुख मोड़ लिये
फिर बाहुबली ना रहे प्रभु,
सुख रूप हुये सुख धाम भये
निश्चय से धन्य-धरा-युग है,
जो श्रवण बेल गोला प्रगटे
पर शेष क्या संशय था भगवन,
जो तप करने फिर आन खड़े
छह खंडों के जब अधीपती,
का चक्र द्वार पर ठिठक गया
जब शौर्य यात्रा का अंतिम,
सोपान अधर में अटक गया
जब तक सारे निज भ्राता गण,
आधिपत ना स्वीकारेंगे
तब तलक चक्रवर्ती कैसे,
सम्राट भरत हो पायेंगे
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इसमें क्या कठिनाई कोई,
सन्देश भेज दो खड़े खड़े
पर शेष क्या संशय था भगवन,
जो तप करने फिर आन खड़े
भाई निग्रँथ हुये सारे,
सब राज़ पाट को सौंप दिये
पर पोदनपुर के महाराजा,
इस अतिक्रमण पर कुपित हुये
अपनी अपनी सम्प्रभुता है,
पितृ आदेशों से निर्धारित
तो आधिपत्य का प्रश्न कहाँ,
किस नीति पर है आधारित
कुछ निजता के हेतु होंगे,
मर्यादा के कुछ नियम कड़े
पर शेष क्या संशय था भगवन,
जो तप करने फिर आन खड़े
मन को जीतो तो हारें हम,
अतिरेक अगर दिखलाओगे
तीनो लोकों का बल लेकर,
आ जाओ कण ना पाओगे
चाहे जैसे अब निर्णय हो,
निर्णायक ना बनने देंगे
रण बीच फैसला होगा अब,
मनमानी ना करने देंगे
लेकर शस्त्रों के साथ चले,
कुछ उत्तर थे कुछ प्रश्न बड़े
पर शेष क्या संशय था भगवन,
जो तप करने फिर आन खड़े
यह कैसी ज़िद कैसी ज्वाला,
नित नए रूप धर आती है
हे परमदेव हे कामदेव,
यूँ उद्देलित कर जाती है
जब नव निधियाँ मुट्ठी में थीं,
जब दुनिया के सरताज हुये
जब चक्र झुका अरु चक्रपति,
सारे शरणागत ताज हुए
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