दो ऐसी शानदार-जानदार ग़ज़लें जो आपके दिलो दिमाग पर छा जायेंगीं। हिंदी रोमांटिक ग़ज़ल्स । True love gazal in hindi । 2 very very sweet gazals
ग़ज़ल-कश्मीर
उन्हें इतनी शिकायत है, कि सब उनको नहीं देता
मेरे हिस्से का मेरा आसमां, उनको नहीं देता।
यही अंदाज़ है मेरा, नज़र अंदाज़ करता हूँ
जो नामाकूल हैं उनको, तवज़्ज़ो मैं नही देता।
नज़र मुझसे बचाकर चल दिये हो, याद भी रखना
मुक़द्दर एक सा हर दिन, ख़ुदा सबको नहीं देता।
हिसाबी मुआमला था और, ये इल्ज़ाम था मुझ पर
दुआयें माँ की सारी मैं ही, रख लेता नही देता।
वो हरसूं रोज़ रोते हैं, हमें कश्मीर दिलवादो
तुम्हारे बाप का है क्या, जो कहते हो नहीं देता।
तुम्हारा चाँद है-तारे तुम्हारे, गुल चमन तितली
बचा क्या है इधर कुछ ख़ास, जो तुमको नहीं देता।
बड़े कमज़र्फ हो मौलिक, उठाकर मुँह चले आये
फ़क़त ईमान है बाकी, वो मेरा है नहीं देता।
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Gazal-Kashmeer
unhen itani shikaayat hai,
ki sab unako nahin deta
mere hisse ka mera aasama,
unako nahin deta.
yahi andaaz hai mera,
nazar andaaz karta hoon
jo naamaakool hain unko,
tavazzo main nahin deta
nazar mujhse bacha kar chal diye ho,
yaad bhi rakhna
muqaddar ek sa har din,
khuda sabko nahin deta .
hisaabi muaamala tha aur,
ye ilzaam tha mujh par
duayen maa ki saari main hi,
rakh leta nahin deta.
vo harsooon roz rote hain,
hame kashmeer dilvaado
tumhaare baap ka hai kya,
jo kahte ho nahin deta.
tumhaara chaand hai-taare tumhare,
gul chaman titli
bacha kya hai idhar kuchh khaas,
jo tumko nahin deta.
bade kamzarf ho maulik,
uthaakar muh chale aaye
Faqat imaan hai baaki,
vo mera hai nahi deta.
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ग़ज़ल-मुक़द्दर
ख़ता इसको कहोगे तो, ख़ता हर बार करता हूँ
हदों से पार जा कर के, मैं तुझको प्यार करता हूँ।
वो छिप छिप के बहुत रोये, उन्हें मालूम भी क्या है
वो मैं ही हूँ जो उनकी आँख से, हर बार बहता हूँ।
मुनहसर चाँद है उनको, जो उनके पास रहते हैं
कि वो उस पार रहते हैं, कि मैं इस पार रहता हूँ।
अगर तुम रूठ जाओगी, मेरा अंजाम क्या होगा
यही बस सोचकर इज़हार से, हर बार डरता हूँ।
मेरे हालात क्या कहिये, मुक़द्दर है चिरागों सा
वो आये हैं हवा देने, मैं जिनके नाम जलता हूँ।
अभी थोड़ी शिकायत है, अभी नाराज़ हूँ उनसे
अभी बस ख़ैरियत की बात ही, दो चार करता हूँ।
सितारा था मुझे सूरज, बनाया है मोहब्बत ने
तेरे रुख़सार पर खिलकर, तेरी जुल्फों में ढलता हूँ।
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Gazal-Muqaddar
khat isko kahoge to,
khata har baar karta hoon
hadon se paar ja kar ke,
main tujhko pyaar karta hoon.
vo chhip chhip ke bahut roye,
unhen maaloom bhi kya hai
vo main hi hoon jo unaki aankh se,
har baar bahta hoon.
munhasar chaand hai unko,
jo unke paas rahte hain
ki vo us paar rahte hain,
ki main is paar rahta hoon.
agar tum rooth jaoge,
mera anzaam kya hoga
yahi bas soch kar izhaar se,
har baar darta hoon.
mere haalaat kya kahiye,
muqaddar hai chiraagon sa
vo aaye hain hava dene,
main jinke naam jalta hoon.
abhi thodi shikaayat hai,
abhi naaraaz hoon unse
abhi bas khairiyat ki baat hi,
do chaar karta hoon.
sitaara tha mujhe sooraj,
banaaya hai mohabbat ne
tere rukhsaar par khilkar,
teri julfon mein dhalta hoon.
शुभ प्रभात अमित भाई सा
शरदपूर्णिमा की शुभ कामनाएँ
बेहतरीन व दिलख़ुश ग़ज़लें
आभार…
सादर
आदरणीया दी जी। आपको भी शरद पूर्णिमा की ढेरों शुभेक्षायें। आपका अतुल्य आभार धन्यवाद ऊर्जा भरे आशीर्वचनों के लिये। सादर
वाह्ह्ह…अमित जी शानदार गज़लें दोनों एक से बढ़कर एक गज़ब का लिखते है आप भाव और शब्दों में अद्भुत साम्य होता है। ‘मुकद्दर’ आपकी गज़ल की सराहना के शब्द नहीं है मेरे.पास इतनी जानदार बनी है।??????
आपका अतुल्य धन्यवाद श्वेता जी। आपकी सराहना ऐसी लगी जैसे पुरुस्कार प्राप्त हो गया हो। बहुत बहुत आभार