गाय पर शायरी – गौवंश पर शायरी, गाय माता पर शायरी, गौमाता पर शायरी, गाय शायरी
गाय पर शायरी – उड़ती बात के सभी प्रशसंकों को मेरा स्नेहिल अभिवादन। मेरे एक प्रशंसक महावीर भंसाली जो कि सांगली महाराष्ट्र में निवास करते हैं, गौ सेवा के पुनीत कार्य में बहुत सक्रियता से रत हैं। भंसाली जी कुछ दिनों से आग्रह कर रहे थे कि मैं गौवंश पर शायरी, गाय माता पर शायरी, गौमाता पर शायरी, गाय पर शायरी लिखूँ।
उल्लेखनीय है कि भंसाली जी और उनके परिवार ने अपना एक बड़ा भूभाग गौशाला के नाम पर एक संस्था सौंधरा माता गौ सेवा संस्थान को दान कर दी। जिस पर सभी जाति धर्म के लोगों ने अर्थदान एवम श्रमदान देकर एक विशाल गौशाला की स्थापना की है। आज इस गौशाला में 350 से ज्यादा गौवंश निर्भय होकर जीवन यापन कर रहा है। मैं श्री महावीर भंसाली जी एवम उनके परिवार की उदारता एवम दानवीरता की ह्रदय से अनुमोदना एवम सराहना करता हूँ। आज के इस आर्टीकल गाय पर शायरी से भारतीय जनमानस में गाय के प्रति गहन संवेदना एवम गौमाता के लिये कुछ कर गुजरने का भाव जागृत हो ऐसी कामना करता हूँ।
गाय पर शायरी
जिनके नहीं हैं नाम, उनके नाम बनेंगें
घर गाँव शहर, मुरलीधर के धाम बनेंगें
ब्रम्हांड के सब देवता, गौ में समाये हैं
तुम गाय पाल लेना, सभी काम बनेंगें।
नंदा सुनंदा अब किसी का, नाम नही है
गौ धूलि-गौ बेला की सुबह, शाम नहीं है
जिसको कहा था कामधेनु, हमने किसी दिन
उस गाय का अब कौंड़ियों में, दाम नहीं है।
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हर कोई जानता है, मगर मानता नहीं
अब उँगली किसी पर भी, कोई तानता नहीं
जिस गाय ने गाँवों को, शहर में बदल दिया
उस गाय को शहरों में, कोई पालता नहीं।
कितनी हो जग हंसाई, कोई बात नहीं है
बस कम ना हो कमाई, कोई बात नहीं है
भैंसों के ज़माने में, गाय कौन पूंछता
अब तोंद निकल आई, कोई बात नहीं है।
कर्तव्य जो कभी थे, आज भूल हो गये
भैसों में फूल गाय में अब, शूल हो गये
इनपुट हो कम मुनाफा डबल, बात कुछ बने
हम लाभ के व्यापार में, मशगूल हो गये।
कि हम अंग्रेज़ियत के, ढ़ोंग पाल बैठे हैं
ना जाने कैसे कैसे, रोग पाल बैठे हैं
नई ज़मात हैं हम, चार डिग्रियाँ लेकर
घरों में गाय छोड़, डॉग पाल बैठे हैं।
स्वभाव धर्म सभ्यता, को भूल बैठे है
जड़ों की आज भव्यता, को भूल बैठे हैं
कि कृष्ण जिसके लिये, स्वर्ग से चले आये
उसी की आज दिव्यता, को भूल बैठे हैं।
ये पथ भुलाओगे, किस छोर चले जाओगे
ज़मीं को अपनी, किधर छोड़ चले जाओगे
युगों युगों से हमें, जिसने पाला पोसा है
वो गाय भूल के, किस ओर चले जाओगे।
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