कश्मीर में पत्थरबाजों के एनकाउंटर पर कविता – सेना द्वारा पत्थरबाजों के एनकाउंटर पर कविता
कश्मीर में पत्थरबाजों के एनकाउंटर पर कविता – सभी पाठकों को जय हिन्द। काश्मीर के पुलवामा में 15/12/18 को सेना के द्वारा 3 आतंकवादियों के साथ 8 पत्थरबाजों के एनकाउंटर पर प्रस्तुत है दो टूक बात कहती कविता। मित्रों इस बावत कहना होगा कि देर से ही सही पर दुरुस्त हुआ। पाकिस्तान समर्थित, वित्तीय पोषित और प्रायोजित आतंकवाद को पत्थरबाजों की आड़ लेकर भारतीय सेना के कामकाज में रोड़ा अटकाया जा रहा था।
जब जब भारतीय सेना आंतकियों का एनकाउंटर करने पहुँचती थी, पत्थरबाजों के दल के दल भारतीय सेना के जवानों पर पत्थरबाजी करके आतंकियों को भागने में मदद करके सेना के काम में व्यवधान डालते थे। लेकिन आख़िरकार भारतीय सरकार और सेना प्रमुख विपिन रावत जी ने एक स्पष्ट नीति बनाई है कि सेना के काम में व्यवधान पहुंचाने वाले पत्थरबाजों और आतंकियों को एक समान दृष्टि से देखा जायेगा और समान कारर्वाई की जायेगी।
मैं इस अभिनंदनीय निर्णय का स्वागत करता हूँ। इस आर्टिकल कश्मीर में पत्थरबाजों के एनकाउंटर पर कविता के माध्यम से भारतीय सेना की कार्रवाई और निर्णय को शाब्दिक सुमन अर्पित करता हूँ। यदि सेना के इस अभिनव कदम से आप सहमत हों तो इस कविता को जमकर शेयर करें और मुझे कमेंट करके अपनी प्रतिक्रिया से अवगत अवश्य करायें।
और इसका अमलीजामा कल दिनांक 15/12/18 को पुलवामा में 3 आतंकवादियों के साथ, पत्थरबाजी करके उनको कवर कर रहे 8 पत्थरबाजों का एनकाउंटर करके पहना दिया गया है। हम भारत सरकार और सेना की इस पहल और कड़े निर्णय का अभिनंदन करते हैं। घाटी में दशकों से पाकिस्तानी शह पर घाटी के वाशिंदे जिस तरह से आतंकवादियों को मदद पहुँचा रहे थे, सेना के काम में व्यवधान डाल रहे थे, यहाँ तक की भारतीय सेना के जवानों को थप्पड़ तक लगा कर उनका मनोबल गिरा रहे थे उससे समूचे भारत बर्ष में आक्रोश व्याप्त था।
कश्मीर में पत्थरबाजों के
एनकाउंटर पर कविता
ठोक दिया लावा सीने में,
सूरत आज बदल डाली
पत्थरबाजों की सेना ने,
छाती छलनी कर डाली।
देर लगी निर्णय में लेकिन,
मर्दों वाली बात हुई
पुलक उठ सारा जनमानस,
बेहतर इक शुरुआत हुई।
पुलवामा में आज जवानों ने,
इतिहास बना डाला
उग्रवादियों के संग पत्थर-
बाजों को दफना डाला।
शौके शहादत वालो आओ,
ऑफर है क़ुर्बानी दो
गोली खाओ ज़न्नत जाओ,
हूरें लो-बिरयानी लो।
अरे ज़ाहिलो भूल गये हो,
तुम रसूल के ईमाँ को
अपनी मिट्टी अपनी बस्ती,
भूल गये अपनी माँ को।
तुम जयचंदों की शह पाकर,
सबक कुरानी भूल गये
वतन बड़ा होता मज़हब से,
बात पुरानी भूल गये।
वाहहह…. वाहहह….. जबरदस्त… बहुत खूब…रक्त में उबाल आ गया अमित जी….बेहद.ओजपूर्ण सार्थक संदेशात्मक रचना…बधाई इस अनमोल सृजन के लिए।
आदरणीया श्वेता जी। आप स्वयं सिद्धहस्त कवियत्री हैं। आपकी सराहना मेरे लिए बहुत महत्त्व रखती है। आपका ह्रदय से अनुपम धन्यवाद। अतुल्य आभार। पुनः पधारें
बहुत अच्छे शब्दों को ढाला है आपने इस कविता में बहुत अच्छी कविता लगी हमें आपकी
बहुत बहुत धन्यवाद अनिल जी। आप की सराहना ऊर्जा से भर देती है।
बहुत सुंदर और शानदार रचना सर जी👌
बहुत बढ़िया भैया 👌👌👌