March 1, 2016
कविता दोहे-हमजोली/kavita dohe-hamjoli
बूढ़ा पेड़ कनेर का, पनघट के था पास
रोज़ सबेरे मिलन की, करते थे हम आस
मुट्ठी भर के दूब ली, फूल चमेली तीन
भेंट में दे के हो गये, बातों में तल्लीन
लोहडी का मेला गये, मंगल का बाजार
काका जी की गोलियाँ, भूल गये हो यार
इमली पत्थर पीस के, चटखारे छै सात
नित्य नई थी दावतें, हमजोली के साथ
बच्चों में बच्चे रहे, बचपन दिया गुजार
ऊँचे कद के हो गये, बिसरा सारा प्यार
सांसो के बाजार में, दिल तन्हा घबराय
विरहन की पीड़ा बड़ी, हमसे सही ना जाये