कविता ‘किसको है ये ख़बर। Poem ‘Kisko hai ye khabar’

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चलते चलते ये सांसे मचल जायेंगी
जिंदगी हाथ से कब फिसल जायेगी
किसको है ये पता किसको है ये ख़बर
आज आई नहीँ मौत कल आयेगी
देखते देखते जां निकल जायेगी
किसको है ये पता किसको है ये ख़बर
ख्वाहिशों की हवस थोड़ी कम हो सके
दूसरों के लिये आँख नम हो सके
बन मुहाफिज तो हस्ती संवर जायेगी
जिंदगी हाथ से कब फिसल जायेगी
किसको है ये पता किसको है ये ख़बर 

 

 

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इक निवाला सही तुम खिलाओ कभी
भूखे बच्चों को घर पै बुलाओ कभी
हैं खुदा इनमें रहमत बरस जायेगी
जिंदगी हाथ से कब फिसल जायेगी
किसको है ये पता किसको है ये ख़बर
दूसरों की खुशी को दुआ मान लो
दीन में ही तो रमता खुदा जान लो
फिर अजानें भी तेरी असर लायेंगी
जिंदगी हाथ से कब फिसल जायेगी
किसको है ये पता किसको है ये ख़बर

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