गीत-सर्वत्र तुम्हीं/Geet-Sarvatra Tumhi

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 गीत 

हर राग रंग हर अंतरंग,
हर कण में तुम्ही तृण तृण में तुम्हीं
हर गाँव-गाँव हो धूप-छांव,
हो रात-रात के चाँद तुम्हीं 

झरने की कल-कल मधुर ध्वनी,
पहली-पहली बारिश की नमीं
तुम उगते सूरज की लाली,
और भौंरे का गुंजन हो तुम्हीं 

बेला गुलाब की गंध तुम्हीं,
तुमहीं हरी घास पै ओस के कण
किसी शायर की तुम कोई ग़ज़ल,
सब गीतों में इक गीत तुम्हीं 

सब ऋतुओं में जो श्रेष्ठ रितु,
तुम उस बसंत की पुरवाई
तुम शरद पूर्णिमा के चंदा,
स्वाति नक्षत्र की बूंद तुम्हीं 

 गीत 

जम से बरसे
नील् गगन से
बारिश है या सदा
दिल में उतरके
निकले संवर के
किसकी है ये दुआ
लहर
झूम गई
चूम गई
साहिल तेरा हुआ
किसकी है ये दुआ

ओ बौराई
राहें रुकना
फूल गुलाबी
अभी ना झुकना
कलियो ना
इतना इतराना
मस्त हवाओं
यूँ ना बहकना
कर लूँ यकीं मैं
पागल नहीँ मैं
कैसे ये कब है हुआ
किसकी है ये दुआ
लहर
झूम गई
चूम गई
साहिल तेरा हुआ
किसकी है ये दुआ

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