कुंवर सिंह पर कविता – एक 80 साल के महाबली एवम स्वतंत्रता संग्राम के रक्त रंजित इतिहास के सबसे बुज़ुर्ग योद्धा जिन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे

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कुंवर सिंह पर कविता – ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, ‘उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।’ ऐसे महानायक की महागाथा इस आर्टिकल कुंवर सिंह पर कविता में आपको पढ़ने को मिलेगी।

वैसे तो सन सत्तावन की क्रांति के सबसे बुज़ुर्ग क्रांतिकारी बहादुर शाह ज़फर माने जाते हैं लेकिन उन्होंने क़ैद में रहते हुये अंग्रेज़ों की ख़िलाफ़त की थी। अतः सही मायनों में क्रांति में सशस्त्र भूमिका निभाने वाले, ढेरों अंग्रेजों को हताहत करने वाले एवम क्रांति का नेतृत्व करने वाले सबसे बुज़ुर्ग क्रांतिकारी का सेहरा बाबू कुंवर सिंह के सर पर ही सजाया जाता है। बिहार के शाहाबाद (अब भोजपुर) के जगदीशपुर के राजपूत राजा को 80 बर्ष की आयु में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर देने के लिये जाना जाता है। आशा है यह आर्टीकल कुंवर सिंह पर कविता आपके ह्रदय में उस महान बुज़ुर्ग क्रांतिकारी के प्रति गहन सम्मान के भाव प्रकट हो पायेंगे।

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कुंवर सिंह पर कविता

कहते हैं एक उमर होती, दुश्मन से लड़ भिड़ जाने की
कहते हैं एक उमर होती, जीवन में कुछ कर जाने की।

लेकिन है ये सब लफ़्फ़ाज़ी, कोई उम्र नहीं कुछ करने की
गर बात वतन की आये तो, हर रुत होती है मरने की।

ये सबक हमें है सिखलाया, इक ऐसे राजदुलारे ने
सन सत्तावन की क्रांति में, जो प्रथम था बिगुल बजाने में।

अस्सी की आयु थी जिसकी, पर लहू राजपूताना था
थे कुँवर सिंह जिनको सबने, फिर भीष्म पितामह माना था।

जागीरदार वो ऊँचे थे, अंग्रेजों का मन डोला था
उस शाहाबाद के सिंहम पर, गोरों ने हमला बोला था।

फ़रमान मिला पटना आओ, गोरे टेलर ने बोला था
पटना ना जाकर सूरा ने, खुलकर के हल्ला बोला था।

सन सत्तावन की जंग अगर, इतनी प्रचंड हो पाई थी
था योगदान इनका महान, जमकर हुड़दंग मचाई थी।

नाना टोपे मंगल पांडे, वो सबके बड़े चहेते थे
भारत माता की अस्मत के, सच्चे रखवाले बेटे थे।

चतुराई से मारा उनको, गोरे बर्षों कुछ कर ना सके
छापेमारी की शैली से, अंग्रेज फ़िरंगी लड़ ना सके।

वन वन भटका कर लूटा था, सालों तक उन्हीं लुटेरों को
है नमन तुम्हें हे बलिदानी, मारा गिन गिन अंग्रेजों को।

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इक दिन चहुँ तरफा घेर लिया, टिड्डी दल जैसे टूट पड़े
उस एक अकेले शूरा पर, सौ सौ तक गोरे टूट पड़े।

अनगिनत वार अनगिनत दाँव, इक हाँथ वार से लटक गया
उस अस्सी बरस के योद्धा की, आँखों का मरकज़ भटक गया।

पर वाह वाह रे वाह वीर, झटके में भुजा उड़ा दी थी
लड़ते लड़ते गँगा जी में, इक पल में बाँह बहा दी थी।

भल भल बहता था लहू मगर, वह वीर भंयकर लड़ता था
था शेष एक ही हाँथ बचा, पर शौर्य देखते बनता था।

घायल वह शेर लड़ा तब तक, जब तक साँसें जीवन में थीं
भारत माँ को सब लौटा दीं, हर बूँद लहू की तन में थी।

गर प्रथम वीर सत्तावन का, वह भीष्म पितामह ना होता
आज़ाद देश का सपना भी, इतना आसान नहीं होता।

आओ सब नमन करें उनको, जो अद्भुत हिम्मतवाले थे
अस्सी की वय के सेनानी, बस कुँवर सिँह मतवाले थे।

उपकार आपके हैं मौलिक, उपकार नहीं ये चुक सकते।
हम दिल से नतमस्तक होते, हम दिल से नतमस्तक होते।

यह आर्टीकल कुंवर सिंह पर कविता आपको कैसा लगा, कमेंट करके अवश्य बतायें।

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