किसान पर कविता – भारतीय किसान पर कवितायें, महिला किसान पर कविता, Farmer poem in hindi, किसान की बदहाली पर कविता
किसान पर कविता – हम सब जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। कितनी बिडंबना है कि एक कृषि प्रधान देश के किसान की माली हालत बद से बदतर होती जा रही है। सरकारें किसान की आर्थिक स्थिति को दुरुस्त करने के लिये एवम खेती को एक लाभदायक उपक्रम बनाने के लिये लगातार प्रयास कर रही है लेकिन हमारे देश में भ्रष्टाचार इतनी हद से ज्यादा फैला हुआ है कि इन योजनाओं का असल लाभ किसानों तक पहुँचता ही नहीं है। मैंने इस आर्टिकल किसान पर कविता के माध्यम से भारतीयों किसानों की एक तस्वीर आपके सामने प्रस्तुत की है। आशा है आपको पसंद आयेंगीं।
किसान पर कविता
धरा का चीरकर सीना, नये अंकुर उगाता है
उगाकर अन्न मेहनत से, हमें भोजन खिलाता है
सदा जिसने मिटाई भूख, जन जन की जहाँ भर की
वही हलधर अभावों में, गले फाँसी लगाता है।
कड़कती सर्दियों में धूप में, काली घटाओं में
लड़े अड़ जाये दुष्कर, आसमानी आपदाओं में
कभी जो हार ना माने, नतीजा चाहे जो भी हो
वही फिर टूट जाता, हार जाता है अभावों में
ज़रा सोचो तरक्की से, सियासत से क्या पाओगे
अगर ये ना उगाएँगे, तो क्या तुम ख़ुद उगाओगे
अभी भी वक़्त हम जाग जायें, इससे पहले कि
ये खेती छोड़ बैठे तो, क्या खाओगे-खिलाओगे
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महिला किसान पर कविता
कई मन की शिलाओं को, जो ज़िद से ठेल देती है
नमन उस यौवना को है, जो हल से खेल लेती है
हो महीना जेठ का या पूस का, सब एक जैसे हैं
ये बेटी हैं किसानों की, कठिन श्रम झेल लेती है
मधुर झंकार पायल की उसे ना, रास आती है
नहीं ऐसा कि सजना ओ संवरना, भूल जाती है
नहीं ख़्वाबों में उग जायेगा दाना, जानती है वो
वो सपनों को भिगोकर, खेत में उड़ेल देती हैं
पसीना ओस बनकर पत्तियों पर, जब चमकता है
फ़सल आती है जब हर कोंपलों पर, फूल खिलता है
सजीले ख़्वाब आँखों में हिंडोले बन, उमड़ते हैं
अभावों से वो ख़्वाबों से, ख़ुशी से खेल लेती है।
किसान पर कविता
जो व्याकुल बच्चों के चेहरे, देख-देख अकुलाता है
मौसम और महाजन के, जुल्मों से तंग हो जाता है
जिस ललाट के स्वेद रक्त से, धरती तर हो जाती है
भारत में अब तक यारो, वो ही किसान कहलाता है।
कसी हुईं बाजू मज़बूत, हथेली में बल रखता है
एक हाँथ में डोर बृषभ की, काँधे पर हल रखता है
कड़ी धूप में तिल तिल जलकर, होम वहीं हो जाता है
भारत में अब तक यारो, वो ही किसान कहलाता है।
रस्म रिवाज़ों की ख़ातिर, जो कर्जे में दब जाता है
बीमारी में आज भी उसको, हाँथ फैलाना पड़ता है
सबकी भूख मिटाने वाला, ख़ुद भूखा रह जाता है
भारत में अब तक यारो, वो ही किसान कहलाता है।
कविताएं भावनाओं को झकझोर देती है।धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय वीरेंद्र जी
प्रथम कविता धरा का चीर कर सिना नए अंकुर उगता है
का कवि को है।
कौन है?
जो व्याकुल बच्चों के चेहरे कविता ने मुझे सबसे ज़्यादा आकर्षित किया। बहुत अच्छी कवितायें लिखी आपने किसान पर, किसान पुत्र होने के नाते ये कवितायें मेरे दिल में उतर गई। आपका बहुत धन्यवाद।
bahut sunder lines
नमस्ते सर,
मैं दीपक काले,
महाराष्ट् से हूँ
मुझे आपसे आपने लिखी कवीताओं के बारे में बात करनी थी |
जो किसान जीवन पर लिखी हुई है|
आपका नंबर मिलेगा तो बहोत मदत होगी|
(दीपक 8975041743)