कहानी सबसे बड़ी भूल – एक शिक्षा देती कहानी
।। कहानी सबसे बड़ी भूल ।।
सरस ने एक महिला को बद-हवास सी हालत में रेल्वे स्टेशन के प्लेटफार्म पर देखा। हाथ में एक बैग था शायद ट्रेन के आने का इंतज़ार कर रही है।
सरस भोपाल में पुलिस इंस्पेक्टर की डयूटी पर तैनात था और ग्वालियर से कुछ दिनों की छुटिटयां बिताकर वापिस आ रहा था। गाड़ी रेल्वे प्लेटफार्म पर धीमी-धीमी गति से रुक रही थी। सरस की नज़रें तब तक उस महिला पर टिकी रहीं जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गई ।
सरस को कहीं न कहीं ऐसा लग रहा था कि इस महिला को मैं जानता हूं पर उस के हुलिए से उसे पहचान नहीं पा रहा था।
उस महिला के विषय में जानने लिए सरस का मन बेचैन हो उठा था। जैसे ही गाड़ी रेल्वे प्लेटफार्म पर लगी तो सरस उस महिला की ओर भागा जिसे ट्रेन ने पीछे छोड़ दिया था। वह महिला यथावत उसी जगह वैसी की वैसी बैठी थी ।
सरस उस के पास जा कर कुछ क्षणों तक उसे गौर से घूरता रहा पर वह महिला तो बेसुध बेख़बर सी अपने आप में ही बैठी थीं। उसे अंदाजा भी नहीं हुआ कि मेरे पास खड़ा-खड़ा कोई मुझे घूरे जा रहा है।
सरस के मुहं से निकल पड़ा ‘अर्पिता दी?? अपना नाम सुनकर वह घबरा गई ‘कौन हो तुम कौन हो?’ उसने घबराई नजरों से सरस को देखा।
‘दी मैं सरस, आप ने मुझे नहीं पहचाना, मैं आप का सबसे अच्छा दोस्त और छोटा भाई भी।’ अर्पिता दीन स्वर में कहती है, ‘सरस’ और उस के सीने से लिपट कर फूट- फूट कर रोने लगती है।
सरस भीड़-भाड़ वाली जगह पर अर्पिता का ऐसा व्यवहार देख कर वह थोड़ा नर्वस सा हो जाता है। उसे लगता है कि एक तो मैं पुलिस इंस्पेक्टर, यदि कोई जान-पहचान वाला ऐसे देखेगा तो क्या सोचेगा?
अर्पिता के सिर को सहलाकर शान्त करता हुआ, ‘दी आप यहाँ से चलिए मेरे साथ मेरे रूम वहां मुझे शांति से बताइये कि आप के साथ क्या हुआ है?’
***
‘दी, आप थोड़ा आराम करो फिर नहा-धोकर फ्रेश हो जाओ तब तक मैं कुछ खाने का प्रबंध करता हूँ।’ सरस रूम से बाहर चला जाता है।
कुछ देर बाद वापिस आ कर देखता है कि दी वैसी की वैसी ही बैठी हैं। अपने अस्त-व्यस्त रूम को ठीक करता-करता कहता है ‘दी आप अभी तक तैयार नहीं हुईं? मैं गरमा-गरम नाश्ता लाया था, वह आप के इंतज़ार में ठण्डा हो रहा है।’
‘अब आप फटाफट तैयार हो जायें मैं तब तक बढ़िया कड़क मसालेदार टेस्टी चाय बनाता हूँ।’ कुछ क्षणों बाद सरस चाय ट्रे में ले कर आ जाता है। सरस अर्पिता की मन:स्तिथि समझता हुआ फिर से बड़े प्यार से कहता है ‘दी नाश्ता कर लें, क्या छोटे भाई की आप इतनी सी बात भी नहीं मानेगी।’
अर्पिता मन ही मन सोचती हैं कि मैं सरस को कैसे बताऊंगी
कि मेरे साथ क्या-क्या हुआ? फिर उसी उधेड़बुन में चुपचाप उठ कर तैयार हो कर नाश्ता करती है।
अर्पिता कुछ देर सब कुछ भुला कर आज कई दिनों बाद बिना किसी भय और डर के नाश्ता कर के अच्छा अनुभव करती है।
‘दी आज मैंने थाने से छुट्टी ले ली है, आप मुझे
अपने साथ हुये अत्याचार और घटनायें जितने अच्छे से बताएंगी, मैं आप को उतने ही अच्छे से न्याय दिला पाऊँगा।’ सरस ने बड़े ही प्यार से कहा। सरस के प्रश्न ने उसे वापिस से उसी दु:खद कष्टदायी पीड़ा में एक पल में फिर भेज दिया।
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अर्पिता कुछ क्षणों के लिए सब कुछ भूल चुकी थी लेकिन फिर से घृणा और नफरत के भाव उसके चेहरे पर उतर आये थे।
‘सरस तुम्हें पता है, यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी।अगर उसे मैं आज अपनी आख़िरी भूल कहूँ तो कोई बड़ी बात न होगी, क्योंकि अब मुझमें किसी और चुनौती से लड़ने का साहस नहीं रहा। इस की सबसे बड़ी वजह यह है कि मेरे अपनों ने मुझ से सारे संबंध तोड़ लिए है।’
‘इस में उन की कोई गलती भी नही, उन्होंने तो मुझे कॉलेज में एडमीशन दिलाने से पहले ही बहुत सी हिदायत दी थी, सही-गलत का फर्क भी घुट्टी की तरह पिलाया था, मगर मैं मूर्ख ही बावरी हो गई थी सजल की मीठी-मीठी आकर्षित करने वाली बातों में। वह दिखने में बहुत हैंडसम था। मेरे तो साधारण से भी नयन-नक्श भी नहीं थे और ऊपर से मेरा साँवला रंग।’
‘जब अजय और मेरा प्यार परवान चढ़ा तो इस की खबर मेरे पिता जो एक स्कूल प्रिंसिपल हैं, उन तक पहुँच गई और उन्होंने हमारे प्यार का विरोध किया तो मैं और सजल चोरी-छिपे मिलने लगे, जब मेरे माता-पिता ने हमारे प्यार को लेकर और सख़्ती दिखाई तो मैं लड़की के नाम से सजल से फोन पर बात करने लगी।’
‘फिर मैंने और अजय ने ग्वालियर से भाग कर, भोपाल में जा कर शादी कर ली। मैंने पापा को फोन करके बताया पापा मैंने और सजल ने एक मंदिर में शादी कर ली है और हम लोग यहाँ…. पर मेरी पूरी बात सुने बिना ही पापा ने कोध्र में आ कर कड़क स्वर में कहा, सुन आज से इस परिवार से तेरा कुछ भी लेना-देना नहीं है। और जो रिश्ते में तेरी छोटी बहन थी मैं उस का विवाह एक बहुत ही स्मार्ट लड़के और प्रतिष्ठित परिवार में करूँगा जो हमारे बराबरी के खानदान का होगा। हमारे जान-पहचान और रिश्तेदरों में भी दूर-दूर तक हमारे एकलौते दामाद की ही चर्चा होगी। आइंदा से दुबारा फ़ोन मत लगाना।और पापा ने क्रोध में फोन रख दिया।’
पर तीन महीनों में ही अजय ने अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया। बात-बात पर चिल्लाना, बिना किसी वजह चिढ़ना, और धीरे-धीरे दिन बद से बदतर होते चले गये।
बिजनेस के नाम पर अजय के कहने पर जो मेरे पापा ने मेरी शादी के लिए पांच लाख के गहने खरीद के रखे थे वह मैं अपने साथ ले आयी थी।
मेरे सारे के सारे गहने वो जुए में हार गया और देर रात
घर शराब पी कर आने लगा। गंदी-गंदी गलियों के साथ-साथ मार-पीट भी करने लगा।
जब सुबहा नशा उतरने के बाद मैं उसे प्यार में साथ-साथ जीने-मरने के वादे याद दिलाती तो वह फिर से एक नया वादा कर रात तक भुला देता था। फिर वही सब करता था।
फिर एक दिन तो हद ही हो गई, उस नीच ने सट्टे में हारे पैसे चुकाने लिए मुझे मेरे सामने खड़े-खड़े ही फोन पर बेच डाला। वो खरीदने वाले गुंडे मुझे दो घन्टे बाद मेरे घर से लेने के लिए आने वाले थे। अजय के मुँह से मेरा सौदा सुन कर मेरा तो पूरा बदन पसीने से तरबदर हो गया था।
मेरा माथा घूमने लगा की मैं करूँ तो क्या करूँ कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। इसी बीच अजय बाथरूम गया। मैंने घबराहट में बाथरूम के गेट की चटकनी बाहर से बंद कर दी और फिर रुम के गेट का ताला लगा कर सीधे टैक्सी पकड़ कर रेल्वे स्टेशन आ गई।
रेल्वे स्टेशन तो आ गई मगर समझ ही नहीं आ रहा था कि जाऊँ तो जाऊँ कहाँ, अपनी व्यथा सुनाते-सुनाते अर्पिता जोर-जोर से रोने लगी, ‘काश मैंने उस समय माता पिता की सच्ची सीख पर अमल कर लिया होता, तो आज मुझे इतने गंदे अनुभव और पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ता। पर मैंने ऐसा करके ह्रदय तोड़ा कि आज मेरे जीने-मरने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है।’
सरस ने डबडबाई आँखों से कहा, ‘दी आप ने बहुत कुछ सह लिया है अपने प्यार में धोखा खा कर, और जो आप ने अपनों के ह्रदय को ठेस पहुँचाई थी उस की सजा आपने अपने हिस्से में बहुत ज्यादा पा ली है, अब उस धोखेबाज सजल की सज़ा की बारी है।’
‘दी,आप मेरे साथ थाने चलकर उस के खिलाफ रिर्पोट लिखा दीजिए, फिर देखना मैं उस अजय का क्या हाल करता हूँ। यह तो अच्छा है कि वह एरिया जहां आप रहती है वह मेरे अंडर में आता है।’
***
सरस जीप से थोड़ी ही दूर एक गुमटी से सिगरेट खरीद कर पीते पीते कुछ सोच ही रहा होता है कि तभी बाइक पर 3 लड़के सवार इस गुमटी पर उतरते हैं और एक लड़का उनमे से अर्पिता की फ़ोटो दिखाकर पूछता है, ‘भाईसाब आपने इसे कहीं देखा है? सरस उस युवक को देख लेता है और पहचान जाता है की यह अजय है। गुमटी वाला थोड़ा ध्यान से तस्वीर देखता हुआ पूछता है,’आप क्यों इसके बारे में पूछ रहे है?’
सिगरेट के कस लेता कुछ ही दूरी पर खड़ा सरस थोड़ी दूर खड़ी जीप में बैठे कांस्टेबलों को इशारा करता है और आनन फानन अजय के साथ बाकी के दो युवकों को घेर लिया जाता है।
अजय कुछ समझ पाता इस से पहले ही उन तीनो को जीप में डाल कर थाने ले जा कर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है।
इसी बीच सरस थाने के एक कांस्टेबल से अर्पिता को अपने घर से थाने लाने के लिये कहता है।
***
अजय अचानक से अर्पिता को थाने में देख कर पहले तो गुस्से से लाल पीला होता है पर बाद में उसे पता चलता है कि इंस्पेक्टर अर्पिता का भाई जैसा है और अर्पिता ने उसके खिलाफ रिर्पोट लिखाई है तो वह धूर्त गिरगिट की तरह अपना रंग बदल कर बार-बार माफी मांगता है और अपने प्यार की दुहाई देता है।
गुस्से से भर कर अर्पिता अजय के गाल पर एक ज़ोरदार थप्पड़ मारती है और कहती है ,’कमीने मैंने तुझ पर विश्वास कर के अपना सब कुछ गँवा दिया और तूने क्या किया? तूँ तो प्यार की बात करने के लायक ही नहीं है।’
‘तूने मुझ पर बहुत अत्याचार किये, और तो और तूने तो मुझे गुंडों को बेच ही डाला था, अगर में सही वक्त पर वहाँ से भाग न पाती तो न जाने मेरी क्या दुर्दशा हो रही होती। तूने मेरा जीवन नर्क बना दिया था, और मेरा सौदा कर के तू मेरी पल-पल की सांसे भी छीनना चाहता था।’
‘सरस तुम इसे इतना टॉर्चर करना की हर पल इस के मुँह से सिर्फ और सिर्फ दया की भीख निकले और ताउम्र जेल में सड़ता रहे ताकि किसी और लड़की का जीवन बर्बाद न कर सके।’
सामने से अपने माता-पिता को देख कर अर्पिता कुछ क्षण के लिए विस्मित हो जाती हैऔर फिर फूट-फूट कर रोने लगती है। माता-पिता भी भीगी-भीगी आँखों से अर्पिता से कहते हैं ‘जिस बेटी को हमने इतने स्नेह से पाला आज ऐसी पीड़ा में, बहुत देर लगाई बेटी तूने ये दुनिया दारी की असलियत जानने में कि जो दायरा माता-पिता अपने बच्चों के लिए तय करते है वह उन के कई वर्षों के अनुभव के आधार पर होता है।’
‘चल बेटी अब तू अपने घर चल, फिर एक नई जंग लड़ने के लिए तैयार हो जा, अभी जो जख्म इस जानवर ने तुझे दिये हैं उससे ज्यादा हमारे आस-पास वाले तुझे तेरे ज़ख्म पर नमक छिडक छिडक कर देंगे, मगर बेटी तू चिंता मत करना, मैं तेरे साथ खड़ा हूँ।’ कहते हुये माता-पिता ने अर्पिता को पने सीने से लगा लिया।
और दोनों हाथ जोड़ कर अर्पिता के माता-पिता ने कहा ‘बेटा सरस तुम्हारा ये उपकार हम पूरे जीवन नहीं भूल पायेंगे। तुम अगर सही वक्त पर अर्पिता को न मिले होते और मदद न की होती तो पता नहीं इसका क्या होता?’
सरस ने बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा ‘नहीं मैंने तो सिर्फ भाई -बहन के रिश्ते को और मजबूत किया है।’
अर्पिता ने भी नम आँखों और मौन शब्दों से सरस का आभार प्रकट किया।
लेखिका – रिंकी जैन