कहानी-नहरिया , किसान पर कहानी, भारतीय किसान पर कहानी
किसान पर कहानी – एक निर्धन किसान भुल्ले की ऐसी मार्मिक कहानी जो आपको द्रवित कर देगी। आज भी विकास से दूर छोटे छोटे गाँवों में सवर्ण दबंगों की दबंगई के शिकार दीन हीन किसान होते रहते हैं। वर्चस्व की यह अघोषित सत्ता आज भी अपना लाल रंग गाँवों में बिखेरती रहती है। आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल किसान पर कहानी नहरिया आप सबको पसंद आयेगी।
किसान पर कहानी
दहकता हुआ चेहरा लेकर राज वीर सिंघ ठाकुर धड़ धड़ाते हुये अपने बैठक मे दाखिल हुये। गुस्से से कांपता वजूद, आँखो में उतरा खून, दांत भिंचे हुये मानो सारे जहाँन को खाक कर डालने का इरादा हो।
लम्बे कद के कृषकाय शरीर के स्वामी ठाकुर साब की आयु तक़रीबन 65 वर्ष की है। लाल भभूका-सख्त चेहरा, उस पर बड़ी एवं उठी हुईं मूंछें उन्हें एक रुआबदार व्यक्तित्व प्रदान करती हैं।
‘राधा, ओ राधा!’ ठाकुर साब ऊँची आवाज़ में चिल्लाये।
तेज गति से चलती हुई एक 58 वर्षीय इकहरे बदन की महिला अपनी साड़ी को ठीक करते हुये घर के बरामदे से निकल कर आई और ठाकुर साब को आशँकित दृष्टि से देखते हुए बोली, ‘क्या हुआ! क्यों इतनी जोर से आवाज़ दे रहे थे, सब ठीक तो है?’
‘वह नीच, दो टके का भुल्ले! गलीच, उसकी तो मैं जान ले लूँगा। उसके तो मैं समूचे कुनबे को आग लगा दूँगा..!!’ ठाकुर साब मानो और ज्यादा भड़क गये।
‘अरे-अरे! क्या अनाप-शनाप बोले जा रहे हैं? शांत हो जाइये। पहले पानी-वानी तो पीजिये।’ ठाकुर साब की पत्नी ने उन्हें एक ग्लास ठंडा पानी लाकर दिया।
ठाकुर साब थोड़े सयंत हुये ‘उस भुल्ले के इतने भाव बढ़ गये हैं कि अब वह मेरी बात, ठाकुर राजवीर सिंघ की बात काटने लगा है!’
‘आखिर हुआ क्या है? नहरिया के बारे में कुछ बात हुई क्या?’
‘इसकी सात पुश्तों ने हमारे टुकडों पर अपना पेट पाला है, अगर हमारे खानदान ने इनको काम नहीँ दिया होता, इनकी इमदाद नहीँ की होती तो सालों की..!’ ठाकुर साब फिर गुस्से में अपने दांत पीसने लगे ‘तो आज़ उसकी इतनी हिम्मत नहीँ होती।’ ठाकुर साब ने ठकुराइन का प्रश्न तक नहीँ सुना।
‘अब तो गाँव वाले भी खुसफुसाने लगे हैं कि अब ठाकुरों का ज़माना चुक गया। इसे मैं मुआफ नहीँ करूँगा, भुल्ले को अब सबक सिखाना ही होगा।’ ठाकुर साब गुर्राकर बोले।
ठकुराइन समझ गई कि ठाकुर साब बहुत गुस्से में है। उनके अहम को ठेस पहुँची है। ये सारा किस्सा पानी की किल्लत के कारण शुरू हुआ। गाँव में विगत 4 वर्षों से पर्याप्त वर्षा नहीँ हुई। सारी फसलें बिना सिंचाई के सूख जाती हैं। गाँव में आय का मुख्य साधन कृषि ही है। पुराने जमींदार होने के कारण गाँव में सबसे ज्यादा कृषि योग्य उपजाऊ भूमि ठाकुर साब के पास ही है। भुल्ले, जो की हरिजन जाति का एक गरीब किसान परिवार है, का भाग्य देखिये जब गाँव के किसी भी किसान के खेतों के कुंओं में पानी नहीँ है, एकमात्र भुल्ले के कुयें में पानी रहता है। वो भी केवल उसकी कृषि योग्य आवश्यकताओं की पूर्ति लायक।
प्रारम्भिक सम्वाद बहुत अच्छे थे।
किन्तु अंत की ओर बढ़ते बढ़ते शायद कहानी के लम्बी होने की चिंता कर आप खुद ही संयम खो बैठे।
और भुल्ले की भलमनसाहत को 1 पेरेग्राफ में ही निपटा दिया।
ई तो सरासर अन्याय हैं माई बाप।
?
जी अवश्य त्रुटि हो सकती है। सच कहूँ तो कहानियाँ लिखना उतना सहज नही मेरे लिये। आपने आगाह किया। आपका बहुत बहुत आभार।
अमित जी कहानी अच्छी है और गाँव के भाई चारे का अच्छा चित्र प्रस्तुत करती है | आपका प्रयास सराहनीय है | सस्नेह ———
आपका ह्र्दयतल से बहुत बहुत आभार आदरणीया। आपके आशीर्वचन ऊर्जा से भर देते हैं। अतुल्य धन्यवाद। पुनः पधारें