दो बहुत ही रोमांटिक गज़लों की प्रस्तुति। Collection of two very very romantic Gazals
। रोमांटिक ग़ज़ल-वहाँ से सुनो ।
सब जुबाँ से नही, कुछ वहाँ से सुनो
जिस जगह हो अना, तुम वहाँ से सुनो।
रात गहराई जो, तो मैं सोने गया
बेसबर सलवटें, तुम वहाँ से सुनो।
नींद आती गई, ख़्वाब आता गया
ख़्वाब में आरजू, तुम वहाँ से सुनो।
चांदनी ओढ़कर, तुम चलीं आईं थीं
चाँद आया जहाँ, तुम वहाँ से सुनो।
रहमतों के तले, लज़्ज़तों का नशा
सब धुवाँ हो गया, तुम वहाँ से सुनो।
मुस्कराया सुकूँ, खिलखिलाई दुआ
नूर बिखरा जहाँ, तुम वहाँ से सुनो।
तब्सिरे मौन थे, थी ख़ुमारी भरी
लफ़्ज़ चुप थे जहाँ, तुम वहाँ से सुनो।
तेरे आगोश में, मैं सिमटता गया
मैं जहाँ सो गया, तुम वहाँ से सुनो।
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। रोमांटिक ग़ज़ल-बेमज़ा ।
मक़तूल हूँ कातिल हूँ, ना जाने क्या हूँ मैं
दुनिया में मुस्तक़िल हूँ, पर लापता हूँ मैं।
है मुनहसर फ़हम पर, मेरी शरारतें
वरना गुनाह हूँ मैं, वरना ख़ता हूँ मैं।
ये कैसे इम्तहां हैं, ये कैसे फासले
तू मेरी हो गई है, तेरा कहाँ हूँ मैं।
दीवाना हूँ तो हूँ मैं, तू तेरी बात कर
तू माने या ना माने, तेरा सदा हूँ मैं।
दिल तो लगा लिये हो, अंजाम सोच लो
मेरा है क्या मुसाफ़िर, और बेक़दा हूँ मैं।
आई है गुलिस्तां से, मासूम इक कली
किसका पता बता दूं, खुद गुमशुदा हूँ मैं।
अखबारी सुर्खियों में, छप जाऊंगा कभी
आये क़ज़ा तो आये, अब बेमज़ा हूँ मैं।
मौलिक रहेगी इशरत, कुछ इक्तिज़ा तो हो
पहले मुझे बता दे, की तेरा क्या हूँ मैं।
दामन करीब लाओ, मुझको समेट लो
जश्न-ए-ख़ुमार हूँ मैं, नूर-ए-गिरां हूँ मैं।
शाब्दिक अर्थ-
अना-पाकीज़ा मुहब्बत, पवित्र रूह
मक़तूल-जिसका क़त्ल हुआ हो
मुस्तक़िल-माना हुआ, अच्छे से स्थापित
मुनहसर-निर्भर करना, आधारित
फ़हम-समझ, बुद्धि, तमीज़
बेक़दा-बे-ठिकाना, जिसका कोई ठौर न हो
क़ज़ा= दुर्भाग्य, आफ़त, ईश्वरीयदंड
बेमज़ा-आनंद रहित, उदास
इशरत-आनन्द, चुहल
इक्तिज़ा-मांग, आवश्यकता, चाह
जश्न-ए-ख़ुमार- आनंद की मदहोशी
नूर-ए-गिरां-अमूल्यता की रौनक,
बेशकीमती चीज़ की रौनक
वाहहह वाह्ह्ह..।लाज़वाब शानदार पंक्तियाँ.गज़ल.की?????? आपने अर्थ लिखकर सोने पे सुहागा कर दिया।
आप का बहुत शुक्रिया श्वेता जी। नव रचनाकारों को उत्साहित करना आप जैसे सुधिजनों का स्वभाव होता है। सरस दृष्टि बनायें रखें। आभार आपका।