October 29, 2016
कविता-‘उम्मीदें’/Kavita-‘Umeeden’
अब फिर से उम्मीदें बढ़ने लगी हैं तितलियां जो कमजोर थीं उड़ने लगी हैं उमंगों में नईं कोंपलें फूटने लगी हैं मायूसी की दीवारें टूटने लगी हैं धड़कनें ग़ज़ल गुनाने लगीं हैं नई कवितायें भी समझ आने लगीं हैं तो क्या फिर से बहार आई है तो क्या फिर से घटा छाई है बात समझ