अतिथि स्वागत शायरी फूल दरख्तों पर खिले हुये, कम ही देखे हैं हमने तो नज़र नज़र केवल, गम ही देखे हैं आप ऐसी तासीर, कहाँ से पाये हैं ज़नाब हमने हमेशा मुस्कराने वाले, कम ही देखे हैं। जगमोहन सी बातें करके, लूट लूट ले जाते हैं सौगातों की झोली भर कर, प्यार बांटते जाते
ताली शायरी पार्ट 1 – उड़ती बात के सभी प्रशसंकों को अमित मौलिक का स्नेहिल अभिवादन। दोस्तों, मंच और ताली एक दूसरे के पूरक हैं। किसी भी मंचीय प्रस्तुति की सफलता का एक ही पैमाना होता है और वह है तालियाँ बजना। हालांकि कई बार अच्छी प्रस्तुति पर भी कमजोर तालियाँ आती हैं। ऐसा इसलिए
धुन्ध ही धुंध थी पूरा आसमान, सर पे उठा रक्खा था एक बार हुज़ूर क्या कह दिया हमने, आतंक मचा रक्खा था हमने इक रोज़ इमदाद मांग कर, उनकी हवा ख़राब कर दी जिन्होंने खुद को बहुत बड़ा, सुल्तान समझ के रक्खा था। बिना दुश्वारी के बिना तकलीफों के ये नामुराद ख़्वाब कहाँ संवरते
ये आँखें ख्वाबगाह बन गईं तुम्हारे तसब्बुर में सोते सोते सारा असबाब तरबतर हो गया है तेरे ख्याल में रोते रोते हम पर तुम्हारी मुहब्बत का नशा इस तरहा तारी है कि हम कमजोर दिल के होते तो दुनिया से चल दिए होते फर्क है बात मे सच भी है झूठ है सुर्ख सूरज हुआ
तेरे अलावा मेरा कौन कहाँ जायेंगे दिमाग से चलेंगे दिल से लौट आयेंगे मुहब्बतों की कसम है तुम्हें हबीब मेरे जो रूठ जाऊँ मना लेना मान जायेंगे तुम उगा तो लिये सूरज वो दिन बनेंगे नहीँ खुदा से नूर मंगा लो ये गुल खिलेंगे नहीँ तसल्लीयों से हवा में उड़ान भरते रहो अब अगर ढूँढ़ने